Friday, December 22, 2017

Dilemma About Life

At the juncture of life
With the love for my wife
I face a serious situation
for
I has an effect on my relation

I am confused to decide
if
My beloved wife is my life
or
My life is for my wife

A situation is so complex
that
I have already stretched to max
but
I don't know what it takes

My life is certainly a treasure
Unravelled by my wife's measure
It certainly is where it is
because
My wife made it worth!!

रूह के ज़ख़्म

कहीं तो आज किसी की याद आएगी
छुपते छुपाते कहीं बात निकल आएगी
कहीं फ़िज़ाएँ भी गुनगुनाएँगीं
यादों की पुरानी परत फिर निकल आएगी

निशाँ ज़ख़्मों के कैसे अब छुपाएँगे
कि पुराने वक़्त की याद कैसे दबाएँगे 
दबे हुए रूह के ज़ख़्म फिर तड़पाएँगे
परतों से निकल नासूर बन जाएँगे

कहीं तो आज किसी की याद आएगी
दबे हुए रूह के ज़ख़्म फिर उभारेगी
तसव्वूर में दबे निशाँ भी अब नज़र आएँगे
जब यादों की परत निकाले जाएँगे 

नासूर फिर एक बार ज़ख़्म बन जाएँगे
जब भीड़ की तन्हाई में हम गुनगुनाएँगे
फ़िज़ाओं को कैसे रुख़सत कर पाएँगे
जब राहों में उनकी यादों से मिलते जाएँगे!!

रिश्तों का आलम

फ़िज़ाओं के रूख से आज
रूह मेरी काँप उठी है
कि तनहाइयों के साये में
मेरी ज़िंदगी बसर करती है

जिनको अपना समझा था
वे बेग़ाने हो गए
जिनके साथ का आसरा था
वही तूफ़ान में छोड़ चले गए

की अब तो आलम है कुछ ऐसा
कि रिश्तों से ही डर लगता है
ढूँढते थे जिन राहों में जन्दगी
उस राहों से डर लगता है

रिश्तों के दरख़त से ऐसे गिरे हैं 
कि हर रिश्ते से अब डर लगता है
आलम अब यही है ज़िंदगी का
कि हर वक़्त तन्हाई का गुमाँ होता है


Monday, August 21, 2017

दम्भ में चूर ईश्वर

दम्भ प्राकृतिक है या प्रकृति
कैसे करें है कैसी यह शक्ति
विचार विमर्श भी किससे करें
अपनी व्यथा कहाँ धरें
हर और यहाँ दम्भ है फैला
जीवन को क़र गया मटमैला

जिससे पूछो दम्भ की औषधि
जताता है वही दम्भ की विधि
पंहुचा ईश्वर के भी द्वार
की प्रार्थना कर दम्भ का संहार
दम्भ से भरा ईश्वर भी बोला
मानव है तू बहुत ही भोला

मन में सोचा कैसी है यह ठिठोली
दम्भ में चूर ईश्वर की भी बोली
ईश्वर फिर बोला है मानव
दम्भ ही तो है सृष्टि में दानव
दानव का कर दूँ यदि मैं संहार
कौन करेगा इस जग में मेरा प्रचार

पा कर ईश्वर को भी दम्भ में चूर
छोड़ आया मैं आस अपनी दूर
दम्भ में ही जीवन है मरण
दम्भ में ही ईश्वर का भी है स्मरण
दम्भ में जब है ईश्वर
तब कैसे होगा दम्भ का संहार

दम्भ प्राकृतिक है या प्रकृति
कैसे करें है कैसी यह शक्ति
हर और यहाँ दम्भ है फैला
जीवन को क़र गया मटमैला
दम्भ में चूर ईश्वर भी बोला
मानव है तू बहुत ही भोला

Sunday, June 11, 2017

Life's Trust

Shades of life presented to me
The kinds to bend my knee
But the bent of my knee
Made life to be stung by bee

Writing of fate was right there on card
Poison of the sting was pretty hard
The pain took its toll on my life
Felt like my heart was torn apart by a knife

Hard it was to actually believe the betrayal
Such was their way to have the portrayal
Point sharp was their way of allegation
The way they ensure to give it the elevation

Sharp was the knife used to cut the chords
Pointed enough were arrows to penetrate the boards
Shades of life the way were presented
Seemed to have their all colors confesticated 

Shades of life were unknown to the fact
To the point that my learning were intact
Without beating them to the dust 
I could win back my life's trust 

करना है दंभ का संहार

शिव की प्रतिमा बन बैठा हूँ 
आज हलाहल पीकर 
भस्मासुर को मैं वर दे चुका 
आज अपनी धुनि रमाकर 

समय अब पुकार रहा मुझे 
है पुकार धुनि तजने की 
रच मोहिनी अवतार एक बार 
करना है भस्मासुर पर वार 

शिव की प्रतिमा बन बैठा हूँ 
देकर भस्मासुर को मैं वर
हलाहल भी पी चुका जीवन मैं 
अब है धुनि तजने की पुकार 

तांडव में रचा है अब जीवन मेरा
करना है दंभ का संहार  
करने को भस्मासुर पर वार 
रचना है अब मोहिनी अवतार 



शिव से पूछो क्या है मुझमें

शिव से पूछो तुम क्या है मुझमें 
क्यों आज शिव है मुझमें 
हाला मैं क्या पी आया जग की 
क्या बन बैठा हूँ शिव की प्रतिमा 

तन्द्रा ना करो भंग मेरी तुम 
ना करो मुझसे अब कोई छल 
कि कब मैं शिव बन जाऊं 
कि कब मुझमें बस जाए शिव 

हाला मैं बहुत पी चुका  जीवन में 
बहुत सह चूका मैं जीवन मंथन 
नहीं अब स्वयं पर वश मेरा 
कि शिवधुनि रमा चूका हूँ मैं अब 

बहुत छला है मुझे मेरे जीवन ने
बहुत सी हाला भी मैं पी चुका
कि अब और नहीं वश स्वयं पर मेरा 
नहीं ज्ञात कब हो मेरे तांडव से सवेरा 

शिव से पूछो क्या है मुझमें 
क्यों बसा है आज शिव मुझमें 
क्यों प्रतिमा बन बैठा हूँ मैं शिव की 
क्यों प्रचंड है महिमा आज तांडव की 

मुझमें मेरा शैंतां नज़र आता है

मुस्कुराहट से मेरी हाल-ऐ-दिल बयान नहीं होता
नज़रों से मेरी मेरे ईमान का गुमान नहीं होता
सोचते हो तुम गर मुझे जानते हो
तो मेरे दीदार से मेरे दिमाग का इल्म नहीं होता

कहीं गर तुम मेरे आब -ऐ-तल्ख़ देखोगे
तो कहीं मेरे दर्द का हिसाब मत लेना
कि  मेरे चेहरे के इंतेखाब-ऐ-आलम से
मेरी हार का हिसाब मत लेना

मुस्कराहट से कभी हाल-ऐ-दिल बयां नहीं करता
मैं अपनी जुबां से कभी दर्द बयाँ नहीं करता
गर कही तुम चले भी गए दर्द दे कर
तो याद रखना मैं बद्दुआ किसी को नहीं देता

मेरे अक्स में गर कभी झांकोगे
तो खुदा का नूर तुम्हें नज़र आएगा
लेकिन गर कभी मेरी आँखों में देखोगे
तो मंज़र-ऐ-तूफ़ां  नज़र आएगा

नज़ाकत मैं कब की पैमानों में डूबा आया हूँ
खुद से मैं कब का खुद को निजात आया हूँ
कि  अब तो मेरा खुदा भी मुझसे डरता है
जब मुझमें मेरा शैंतां नज़र आता है

गर तुम्हें अब भी गुमान है अपने इल्म का
तो एक बार फ़िज़ाओं से पूछ कर देखो
कि  अब तो मेरा खुदा भी मुझसे डरता है
जब मुझमें मेरा शैंतां नज़र आता है 

Saturday, June 3, 2017

Betrayal

I still remember the summer time
I still remember the wind chime
I still remember when our words rhyme
I still remember our partnership in crime

Over the years of life that passed
Through tick and thins that crossed
You always had a company
Whenever you felt empty and lonely

I trusted you forever and for good
But you seems to have chopped me like wood
Stabbed me at my back is what you did
Pretending for my pal and my friend

You forgot what all I did for you
You messed it all up without a clue
You forgot that I know your person
You eloped resulting in a treason

Don't worry I wouldn't harm you 
It's a bitter pill that I will chew
Trust me that I wouldn't betray you
My lips are sealed with my promise's glue

One thing that I wouldn't know for sure
One thing that I know wouldn't ever cure
I wish I would have known the fact
I wish to privileged to know the cause of act

But now it all seems to me as the secret
Hiding away in life's some docket
Seems like this is the actual portrayal
Your nature is full of nothing but Betrayal

Monday, May 29, 2017

एक कवि की पीड़ा

जब कभी कविता की पंक्तियाँ पढ़ता हूँ 
तो भाषा का अनुचित प्रयोग का ज्ञान होता है
हिंदी में कही जाने वाली पंक्तियों में 
अन्य भाषाओं के शब्दों का समावेश होता है

ना जाने कहाँ विलीन हो गई है परिपक्वता
अब तो काव्य की रचना मैं भी है अराजकता
भावनात्मक विश्लेषण भी अब नहीं है होता
कहीं विलुप्त होती कला का ही आभास है होता 

संदेश से मैं भावविभोर कैसे हो सकता हूँ 
जब अपनी ही मातृभाषा की पीड़ा देखता हूँ 
क्षोभ होता है मुझे ऐसे कवियों पर 
बनाते है पुष्पमाला काँटे पिरोकर 

बस अब एक ही विनती है जन जन से
कुछ तो प्रयत्न करो अपने हृदय से 
मशतिष्क को ना घेरो ऐसे विडम्बना से 
कि कहीं विलुप्त ना हो जाए भाषा प्रचलन से।।

Sunday, May 28, 2017

बात की बात

कहीं दिन कहीं रात की है बात
कि लफ़्ज़ों से मुलाक़ात की है बात
नहीं कोई शिकवा किसी लम्हे से हमें 
गर इस नज़्म का तकल्लुफ़ ना हो तुम्हें


कि यहीं एक बात से निकलती है एक बात
कहीं दिन तो कहीं रात में गुज़रती है बात
लफ़्ज़ों से कहीं तो कहीं अदाओं से कही बात 
कहीं निगाहों से कहीं आब-ऐ-तल्ख़ से कही बात


ज़िंदगी के हर रूख से निकली हुई बात 
कहीं हँसती हंसाती कहीं रोती से ये बात 
हर मोड़ पर उठती हुई एक नए रूख की बात 
की लफ़्ज़ों से मुलाक़ात में निकली हुई बात


नहीं इस बात मैं गर कुछ है तो मेरे जज़्बात 
नहीं इस बात में गर कुछ है तो वक़्त ओ हालात 
गर इस बात में अब भी कुछ है तो है लफ़जात 
क्योंकि इन्हीं लफ़्ज़ों से तो बनती है हर एक बात।।

ज़िन्दगी के फलसफे

ज़िन्दगी से जो मिला वो गम ना थे
कुछ गर वो थे तो लम्हों के तज़ुर्बे
सीने से लगाया जिन्हें वो गम ना थे
कुछ गर वो थे तो तमन्नाओं के जनाजे

तसव्वुर से थे वो लम्हे हमारे
जिन्हें हमने बुना था तमन्नाओं के सहारे 
तजुर्बों ने हमको दिखाई ऐसी असलियत
कि गमों से लगा ज़िन्दगी का हर सबक 

ज़िन्दगी ने कुछ दिया गर हमको
था वही एक सबक गम समझे जिसको
गले से गर कभी लगाना है कुछ भी
तो समझो पहले ज़िन्दगी के फलसफे को

ज़िन्दगी से जो मिला वो गम ना थे
कुछ गर वो थे तो लम्हों के तज़ुर्बे
सीने से लगाया जिन्हें वो गम ना थे
कुछ गर वो थे तो तमन्नाओं के जनाजे

Thursday, May 4, 2017

आसार ऐ हालात

ना हालात ना ही आसार मेरी ज़िंदगी है
कि ज़िन्दगी नहीं बनती इनसे मुक्कमल
तासीर इनकी मिलती जरूर ज़िन्दगी में
लेकिन ज़िन्दगी इनकी मोहताज़ नहीं

चलें हम ज़माने के साथ कभी
या कभी ज़माना चले साथ हमारे
ज़िन्दगी में इसका अहम इतना नहीं
जितना है हमारी ज़िंदगी का हमारे लिए

सोचते हैं अक्सर हालात यूँ न होते
की अभी आसार भी ऐसे ना बनते
ज़िन्दगी हमारी भी आसाँ होती
लेकिन कुछ और भी तो हालात होते

बस अब इतना ही इल्म है हमको
कि हालात कहो या कहो आसार
तज़ुर्बा यही कहता है ऐ ज़िन्दगी
कि कयामत तक ही है तेरा सफर।।

Saturday, April 29, 2017

सिंगार

कोई बादर गरजे, कहीं बिजुरिया चमके 
जब तेरा कंगना खनके 
अंगना मेरा महके, चिड़िया वहां चहके 
जब पायल तेरी छमके 

झुमका तेरा मचाये शोर 
बिंदिया तेरी उड़ाए निंदिया 
अधरों पर तेरी गुलाब सी लाली 
नैना जैसे हो काजर से काली 

गजरे से तेरे उठी वो महक 
ह्रदय भी उससे गया चहक 
ना कोई बदरा ना कोई बिजुरिया 
सिंगार में तू लगे है कोयलिया 

कहीं बादर गरजे, कहीं बिजुरिया चमके 
जब तेरे पैरों में पायल खनके 
हर क्षण घर मेरा महके 
जब तू मेरे अंगना में चहके|| 

Thursday, March 16, 2017

हर हर हर महादेव

ॐ हर हर हर महादेवाए नमः 
ॐ प्रभु अव्यग्राय नमः 
हरि हर अव्यक्ताय नमः 
ॐ हरि हरि हरि ॐ शिवाय नमः 

तू आदि है तू ही अंत है 
तू ही मूरत तू ही लिंग है 
तुझसे ही जग है
तुझमें ही जग है

विनाशक है तू रचयिता भी तू
मानव के मश्तिष्क से
दानव के अंतर्मन में
बसा है केवल तेरा ही नाम

ॐ हर हर हर महादेवाए नमः 
ॐ प्रभु अव्यग्राय नमः 
हरि हर अव्यक्ताय नमः 
ॐ हरि हरि हरि ॐ शिवाय नमः





चैना

अजहुँ ना आये चैना, काहे बीती ये रैना
बलम मोरे कहाँ खोये, सूनी बीती ये रैना 
बोले पपीहरा, नाचे मयूर, कैसे बिताऊं मैं रैना
हाय सुनी सुनी बिताऊं मैं कैसे ये रैना

Wednesday, January 18, 2017

कल्पना

कल्पना मेरी जीती है शब्दों में
शब्दों से हूँ मैं खेलता
कल्पना में नहीं जी सकता मैं
जीता हूँ कल्पना अपनी शब्दों में

जीवन कल्पना नहीं एक सच है
कल्पना में जीना नहीं है मुझे
शब्दों को पिरो मैं लिखता हूँ
वर्णमाला से गीत बनाता हूँ

शब्दों में मेरे एक सच है 
जीती है इनमें मेरी कल्पना
कल्पना में नहीं है मेरा जीवन 
जीवन की कल्पना मैं शब्दों में कहता हूँ

कल्पना मेरी जीती है शब्दों में
शब्दों से मैं सच कहता हूँ
नहीं जी सकता मैं कल्पना में
मेरी कल्पना शब्दों में बहती है 

जीवन कलह

कलह अंतर्मन का कहता है मेरी सुन
हृदयालाप कहे तू मेरी सुन
मष्तिष्क में भी मचा है कोलाहल 
नहीं है स्थिर जीवन, पनप रहे उग्र विचार 

नहीं चाहता जीवन में कोई अल्पविराम 
नहीं चाहता कोई जीवन में स्थिर कोलाहल 
किन्तु जीवन फिर भी है अस्थिर
जीवन में फिर भी है एक कलह 

हलाहल जीवन की मैं पी चुका 
कोलाहल फिर भी मिटा नहीं 
जीवन हाल बन गई अश्रुमाला 
कोहराम फिर भी थमा नहीं 

कैसे कहूँ, किससे पूछूँ कैसी है विडम्बना 
कैसे जिऊँ, किससे जानू मैं इसका उत्तर 
कलह अंतर्मन का कहता है मेरी सुन
किन्तु नहीं पिरो सकता मैं उससे वर्णमाला