Tuesday, February 23, 2016

लहू के दो रंग

आज इस धरा पर लहू के दो रंग
एक चढ़ गया मातृभूमि को नमन करते
और एक हो गया श्वेत 
मातृभूमि का करते हुए शील भंग

वीर सपूत छाप रक्तिम छोड़ गया 
चढ़ गया माँ के चरणो भेंट
 श्वेत लहू धारक किंतु
कर रहा लाल माँ की ही कोख

लहू के दो रंग देखे मैंने
हुआ कितना मैं लज्जित
सीमा पर बलिदान दे रहा सैनिक
छाप रहा अराजकता यहाँ हर दैनिक

लहू के दो रंग हुए इस धरा पर
एक है रक्तिम और दूसरा श्वेत
एक लाल कर गया माँ की चुनर रंग
दूसरा अब भी कर रहा माँ का शील भंग।।

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