Wednesday, December 14, 2016

विमुद्रीकरण पर सिकी राजनीति की रोटी

विमुद्रीकरण किस प्रकार चिंता जनक है 
कि विमुद्रीकरण की कतार में हुई मृत्यु 
एक राजनितिक पहलू बन जाता है 
बिना किसी पुष्टिकरण है 
पत्राचार का एक बन जाता है 

इन बुद्धिजीविओं से विनती है 
यदि तुम चाहते हो ऐसे ही विषय 
तो जरा ध्यान लगाना दक्षिण में 
कुछ वहां भी सिधार गए है 
अम्मा के निधन के समाचार से 

कुछ इन पहलुओं पर भी करना विचार 
कि होते है निधन के और भी कारक 
और यदि विमुद्रीकरण है कारक 
तो हर वह कारक निधन का 
जड़ से समाप्त करने की करो तुम मांग 

क्या इससे पहले कभी कोई कतार में नहीं लगा 
क्या नहीं हुआ निधन किसी का किसी कतार में 
अरे बुद्धिजीविओं, क्यों जाते हो भूल 
जाने कितने ही सिधार गए है राशन की कतार में 
कभी तुमने वहां तो स्वरोच्चारित नहीं किया 

जाने कितने सिधार गए कहीं किसी कतार में 
नहीं सुनी मैंने कहीं मांग 
उस कटारट के कारक को समाप्त करने की 
आज क्या योजन है की अकस्मात ही 
सारे बुद्धिजीवी जाग उठे 

कहीं किसी का निधन एक शुन्य सा लगता है 
कहीं किसी परिवार में जब अपना सिधार जाता है 
ऐसे पहलुओं पर जरा तुम विचार करना 
अपनी राजनीति की रोटी सेकने तुम 
किसी मृत की चिता पर मगरमच्छ के आंसू ना बहाना।।

Effects of Demonetization

Some call it demonization
Some call it normalization
When I looked at it
It seemed to be Demonetization

That was the day to remember
When color of money became amber
Though it was black of white
With recall it lost its shine

Jobs were lost expenses were tight
Make ends meet was tough to abide
Forecasts were dim
For money was everyone's plight

ATMs ran dry without any cash
Still hoarders could have it stashed
Raids unearthed huge chunk of money
It seemed like beehives loaded with honey

Still there seems to be no reprieve
Common man has to still grieve
Jobs were lost, markets were slow
Lack of money had that hard blow

Mismanagement is some called as culprit
Size of note was also identified as misfit
But the biggest case was of back channel
That proved to be a pretty nice canal

Money flowed, it flowed to agents
No, it didn't flow to the real claimants
Road to hell it did become
Demonetization was not that welcomed

Thursday, December 8, 2016

कैसे करे अब स्वयं को चैतन्य

आज की समय में कौन अपना है कौन पराया
कैसे पहचान करें किसमे राम किसमे रावण समाया
कैसे स्वयं को कोई चैतन्य करे
जब भगवान का मोल भी यहाँ पैसों में धरे
नहीं मिलता बिन माया के कुछ संसार में
बिन माया अपने भी दिखाते हैं बेग़ानो में
कैसे करे अब स्वयं को हम चैतन्य
कि अब रहते हैं रिश्तों की क़ब्र में
कहाँ जाएँ हम ढूँढने अपनों को
कि बिन माया अपने भी दिखाते हैं बेग़ानो में

Wednesday, November 23, 2016

All in the Game

Did you ever hear the voice
The voice of Love
Did you ever hear the language
The language of Love

Did you ever witness that communication
The communication of Love
I'll bet, No is the answer
For the Love is never defined in words

The Game of Love is always played
On the turf of Hearts
Where some win some lose
But it never turns to War of Words

No language, no words, no voice
Can ever express true love
It's a sonet that flows with emotions
And only emotions are fair in the Game

इस दुनिया में

इस दुनिया में दर्द और भी है
कहीं भीड़ में एक दर्द और भी है

हर ओर मैं देखता हूँ दर्द का मंज़र
कि इस दर्द में तड़पे परवाने और हैं

दर्द किसका क्या है, इल्म नहीं मुझे
लेकिन दिखती दुनिया दर्द से सराबोर है

हर मोड़ पर सोचता हूँ मिलेगा मेहरबाँ कोई
कि महकाएगा इस ज़मीं को सुर्ख फूलों सा

लेकिन गुज़र सा जाता है मोड़ दर्द की आह में
और रह जाता है फिर वही मंज़र रहे दर्द का

Sunday, October 2, 2016

इन्तेहाँ

काश कि कुछ ऐसा होता
जिसमें कुछ खट्टा कुछ मीठा होता
हर लम्हा मैं उन्हें ही पूछा करता
गर उन्हें ज़रा सा भी मेरा इल्म होता
अब क्या कहें और किससे कहे
कि ना वो वज़ूद रहा ना रब का वास्ता
कहीं आब-ऐ-तल्ख़ है छुपा ज़िन्दगी में
तो कहीं अश्क-ऐ-फ़िज़ा भी खामोश है
अब तो एक ही सुरूर ज़िंदा है जहाँ में
कि कैसे कोई इन्तेहाँ इंतज़ार करे।

Friday, September 30, 2016

शुक्राना बद्दुआ का

बद्दुआ में भी तो शामिल है दुआ
तो क्या हुआ तुमने हमें बद्दुआ दी
कहीं तुम्हारे जेहन में दुआ के वक़्त
इस काफ़िर का नाम तो शुमार हुआ

कि ज़िन्दगी भर की बद्दुआओं में
इस काफ़िर का नाम लेकर
अपनी इबादत में ऐ ख़ुदा
देने वाला मेहरबाँ तो हुआ

गर दुआओं में मेरा नाम ऐ खुदा
तेरे इल्म में ना आया कभी
तो शुक्रगुज़ार हूँ मैं उनका
जिन्होंने बद्दुआ में नाम शुमार किया

कि ऐ खुदा, किसी बद्दुआ से ही सही
कभी तूने इस काफ़िर को देखा तो होगा
देखा तूने ही होगा कि नाचीज़ क्या है
देखा तूने ही होगा कि क्या देना है।।

Friday, September 23, 2016

मैं शिव हूँ, शिव् है मुझमें

मैं शिव हूँ, शिव् है मुझमें 
ये राष्ट्र मेरा शिवाला 
हाँ हूँ मैं शिव और शिव है मुझमें 
पीता आया हूँ बरसों से मैं हाला 

एक युग बीत गया तपस्या में
फिर भी नरसंहार हुआ है 
एक युग हुआ मेरे आसान को 
फिर भी विनाश नहीं है थमता 

क्या भूल गए तुम मुझको 
यदि पी सकता हूँ मैं हाला 
यदि पी सकता हूँ विष का प्याला 
तो तांडव भी मेरा ही नृत्य है 

जब जब जग में हुआ अँधेरा 
जब जब किया पिशाचों ने नृत्य 
धुनि से अपनी मैं उठ कर हूँ आया
तांडव कर त्रिशूल को रक्त है पिलाया 

मत बूझो मुझसे मृत्यु की पहेली 
मत भूलो मेरे त्रिनेत्र की होली 
मैं शिव हूँ और शिव है मुझमें 
भोला हूँ किन्तु संहार बसा है तांडव में॥ 

Thursday, September 22, 2016

झुक कर चलना सीखो

मधुकर को मधु पीने से
कभी मधुमेह नहीं होता
मधुर भाषा में वार्तालाप से
कभी किसी को रंज नहीं होता
कभी किसी के मुख पर
सच बोलने से
रिश्तों के मायने नहीं बदलते
बदलते हैं तो केवल
मानव के विचार विस्मित होने को

मधुकर को मधु पीने से
कभी मधुमेह नहीं होता
कहीं कभी झुकने से
मानव का कद छोटा नहीं होता
होता है यदि कुछ छोटा
तो होता है विचारों का कुनबा
संकीर्णता विचारों के चलते
किसी का विकास नहीं होता

जीवन में झुक झुक चलने से
कोई मलाल नहीं होता
समय के सामने ना झुकने से
समय पर प्रहार नहीं होता
समय स्वयं बलवान है
कभी वाही जतलाएगा
जितना तुम उससे अकड़ोगे
उतना नीचे तुम्हें ले जाएगा

स्मरित केवल इतना कर लो
के तीर चलने को कमान पीछे हटती है
तोप का गोला दागने पर
तोप भी पीछे हटती है
मंदिर में नमन करते हो तुम झुककर
लेकिन मानवता के आगे झुकने को
तुम हुंकारते हो अकड़कर
फिर भी झुक कर चलने वालों की
जीवन में कभी हाट नहीं होती।

ज्ञान बंटोर ले

यदि कहीं ज्ञान बँट रहा है 
तो तू ज्ञान बंटोर ले 
यदि कोई ज्ञान बिखेर रहा है 
तो तू ज्ञान बंटोर ले 

ज्ञानवर्धन कोई क्रीड़ा नहीं 
वर्षों की तपस्या है
ज्ञान से तू समृद्ध होगा 
ज्ञान से तू बलवान होगा 

ज्ञान का कोई प्रदर्शन नहीं होता 
कहीं बंटता है तो कोई पाता है 
ज्ञान कभी ख़त्म नहीं होता खोता नहीं 
ज्ञान केवल बदलता है अपना स्वरुप 

कभी कोई ज्ञान प्रदर्शित नहीं करता
 यह एक नकारात्मक सोच है 
न ग्रसित हो इस हीं भाव से कभी 
बस तू उस ज्ञान को बंटोर ले 

Tuesday, September 20, 2016

मृत्यु पर राजनीति

वीरगति को प्राप्त कर गए
परायण कर गए संसार से
देखो उनकी माता रोती है
पलकों में लहू के अश्रु लिए
अच्छे दिन को तुम तकते हो
उनकी वीरगति के सहानुभूति में
यदि अच्छे दिन मोदी लाएगा
तो परिभाषित करो अच्छे दिन को
लहू शास्त्रों का तब भी बहा था
जब रामराज्य था सतयुग में
अब तुम कलजुग में जीते हो
किसी की मृत्यु में अच्छे दिन खोजते हो

Monday, September 19, 2016

बहुत हो चुका परिहास

रक्त की आज फिर बानी है धारा 
फिर रहा मानव मारा मारा 
हीन भावना से ग्रसित अहंकारी 
फैला रहा घृणा की महामारी 

वर्षो बीत गए उसको समझाते 
हाथ जोड़ जोड़ उसे मनाते 
फिर भी ना सीखा वो संभलना 
आता है उसे केवल फिसलना 

सन सैंतालीस में खाई मुँह की 
सन पैंसठ में भी दिखाई पीठ 
सन इकहत्तर में खोया उसने अपना राज 
फिर भी कारगिल में दिखाए अपने काज 

बारम्बार उसे समझाया 
किन्तु उसे तनिक समझ ना आया 
करता है हर बार मनमानी 
पहुंचाई उसने इस बार उरी में हानि 

क्यों ना इस इस बार उसे हम दौड़ाएं 
उसका पाठ उसे ही पढ़ाएं 
बहुत हुई सेना की बलिदानी 
अब बता दो पराक्रम का नहीं कोई सानी 

बहुत प्राप्त कर चुके बेटे वीरगति 
अब और नहीं सहेंगे सिन्दूर की क्षति 
इस बार बदल दो इतिहास 
बहुत हो चुका सीमा पर परिहास 

दो बूंग लहुं उनका भी बहा दो 
कितना बल है सपूतों में दिखा दो 
अब और मत करो कोई देर 
कर दो सत्ता के लालची को तुम ढेर 

Friday, September 9, 2016

दरख़्त

शाख वो काट रहे, उसी शाख पर बैठ
कि कुदरत की नेमत पर कर रहे घुसपैठ
शाख पर हुई चोट से दरख़्त सकपकाया
आंधी के झोंके में उसने उस इंसां को गिराया
चोट लगी उसपर तो इंसां चिल्लाया
शर्मसार नहीं हुआ ना उसको समझ आया
उठा कुल्हाड़ा उसने दरख़्त पर चलाया
इस हिमाकत पर उसकी सरमाया भी गुस्साया
आसमाँ में बादल गरजे, धरती भी गरमाई
कुछ पलों उस मेहमाँ को माटी ने भींचा
उस दरख्त की जड़ों को उसके लहू से सींचा
भूला भटका था वो जिसका वजूद मिट गया
इतना भी ना समझा उसने की माटी में मिल गया
उसी दरख़्त के साए में मिला था उसको आराम
उसी दरख़्त के पत्तों से बिछा था दस्तरखान
काटने उस शाख को तू चला था इंसान
जिसपर लगे फलों की मिठास से था तू अंजान

Monday, August 29, 2016

Game of Love

Game of Love ain't made for me
for
It always brought me down to knee
Something I could never flee

Even if I loved with my heart
My aim was never right as dart
Agony in love was what had its base
Success was never my case

Pain was the word on my lip
Blood is what I had in every sip
I wanted to be loved always
But love had to depart its ways

Tried my level hard and fast
But could never help on my past
It was my past that's the culprit
Causing agony and fate's misprint

Though Here standing now all alone
Where whom I loved is gone
Dunno how would I play this game
Where I could achieve nothing but shame

हृदय पीड़ा


हृदय पर तेरे शाब्दिक बाण के घाव लिए
इस संसार में यूँही भटकते रहते हैं
हृदय में लिए तुझसे बिछड़ने की पीड़ा
आज जीवन जीने की कला सीख रहे हैं

तुम मरने की क्या बात कर रहे हो
यहाँ कितने हृदय में पीड़ा लिए जीते है
जीवन का हलाहल पी जीते है
अपनो से बिछड़ने का विश पी रहते हैं

तुम क्या कुछ कर सकते थे, तुम कर चुके
अब शाब्दिक बाणों से खेलते हो
हृदय पीड़ा तुम क्या जान सकोगे
जब ख़ुद पीड़ा सहने से डरते हो

यहाँ हर वक़्त हर पीड़ा सह कर जीते हैं
तेरे हर शब्द सुन चुप रहते हैं
ना जाने कौन किसे कह गया
कि अब तेरे ही आने की राह तकते हैं।।

Poem composed with a very wayward line of thoughts!!

ता ज़िन्दगी मैं सुनता रहा

ता ज़िन्दगी मैं खामोश रहा
खामोश दर्द में जीता रहा
क़ि सोचता था कभी ज़िन्दगी में
मैं हाल-ए-दिल बयां करूँगा

सुनते सुनते होश खो गए
हाल-ए-दिल बयां ना हुआ
दर्द अपनी हद से आज़ाद हुआ
फिर भी शब्द जुबां पर ना आए

आज सोचा था मेरे अपने होंगे
जो मुझमें एक इंसां देखेंगे
शायद वो मुझे समझेंगे
कभी बैठ साथ मेरी सुनेंगे

जब प्लाट देखा मैंने ज़िन्दगी को
पाया, ता ज़िन्दगी मैं सुनता रहा
खामोशियों में जीत रहा
कहने को अब, ना कोई मेरा अपना रहा।।

Monday, August 15, 2016

When in Life

When in life I wanted to convey
Lost I was for those thoughts
When I wanted to say something
Lost I was for those words

It was a paradigm shift for me
It was a sea of change
Lost I was to learn the way
You wanted me to convey

It is my love for you today
That holds me by the bay
It is my love for your being
That hold me from fleeing

It is all about love and care
That I wanted to convey and share
But you never showed that willingness
To listen to me with promptness

Whenever I wanted to convey
I never found my way
To be next to you my love
To be in your arms to say!!

जीवन द्विविधा

कहने को बहुत कुछ था
लेकिन सुनाते किसको
जिन्हें जीवन का आधार समझा
उन्होंने हमें कभी ना समझा

जिस दर पर आज हम हैं
उस दर को खोलेगा कौन
जिस राह हम चल रहे हैं
उसपर राहगुज़र बनेगा कौन

कहने को बहुत कुछ था
किन्तु आज सुनेगा कौन
करने को भरोसा तो है
किन्तु हमपर भरोसा करेगा कौन

इष्ट को अपने हम पूजते हैं
किन्तु हमारा इष्ट है कौन
जिसे जीवन की डोर सौंपी थी
उसे हमारा बनाएगा कौन

कहने को बहुत कुछ था
किन्तु उन्हें बताएगा कौन
संग उनके रहना चाहते हैं
किन्तु उन्हें मनाएगा कौन!!

Thursday, July 28, 2016

कहानी हम जैसों की

कहते इसे कहानी घर घर की हैं 
इसमें ना कोई अपना है ना पराया 
पाना हर कदम पर तुमको धोखा है 
यही बस इस कहानी का झरोखा है 

कोई किसी का नहीं है यहाँ 
सारे अपने आप से ही जूझ रहे 
किसी को नहीं है समय यहाँ 
सारे अपने ही ग़मों से लड़ रहे 

कहते हैं इसे कहानी हर घर की 
इसमें ना मैं हूँ कहीं ना तुम हो 
पर है ग़मज़दा ज़िन्दगी इसमें 
जिंदाई जो हम और तुम जीते हैं 

हर किसी को चाह है यहाँ कुछ पाने की 
नहीं चाहता गर कोई तो वो है देना 
नहीं चाहता गर कोई तो वो है खोना 
फिर चाहे खुद भी इनसे कुछ मांग ले 

यह है कहानी घर घर की 
कहते हैं इसे कहानी हर घर की 
नहीं हैं इसमें हम और तुम
फिर भी यह कहानी है हम जैसों की॥ 

Monday, July 4, 2016

कहने को बहुत कुछ था

कहने को बहुत कुछ था 
मगर वो सुन नहीं पाये 
आये थे मेरे दर पर मिलने 
मगर मिल नहीं पाये 

हमने सोचा कि गुफ्तगूं करेंगे 
मगर फिर खामोश ही रह गए 
कहने को बहुत कुछ था 
मगर वो सुन नहीं पाये 

अंदाज़ वो अपने अब देखते हैं 
आईने में अब खुद से छुपकर 
जुबां पर उनके लफ्ज़ आते हैं 
कहते हैं वो अब खुद से छुपकर 

कहने को जो कुछ था 
हलक में ही रहा गया 
वो आये थे मेरे दर पर 
मगर अश्कों से मेरे बह गए 

एक अजनबी से आये थे मिलने
दर पर मेरे वो लड़खड़ाते 
सेहरा के भीगी रेत पर 
मेरे ही अश्कों से ढह गए 

कहने को बहुत कुछ था
मगर दर्द की तन्हाइयों सा खो गया 
आये थे वो मुझे कुछ कहने सुनने
मगर अश्कों से मेरे बह गए 

Sunday, July 3, 2016

दूर निकल आए हैं

दूर निकल आए हैं -२
हम तेरी चाहत में
नहीं अब दिखती खुदाई 
तेरी नज़रों की जुदाई में 

दूर निकल आए हैं -२
हम तेरी निगाहो में
नहीं मिलती राह अब हमें
तेरी अपनी निगाहों में 

कहीं क़ाफ़िला निकल कोई
कहीं चाहत का जनाज़ा
रूखसत हुए आज कुछ
कुछ को मिला नया ज़माना

दूर निकल आए हैं -२
हम अकेले तेरी चाहत में
नहीं दिखती अब खुदाई भी
तेरी नज़रों की जुदाई में -२

क्या तेरा खोया है?

खोया सा आज तेरा दिल है
खोये खोये से हैं तेरे शब्द 
खोयी खोयी सी ये निगाहें 
क्या तेरे सनम आज खोये हैं 

किस तरह तुझे आज ढूंढे 
कि  आज तेरा वज़ूद ही ग़ुम है
निगाहों में दिखता एक सवाल है 
कि आज तेरी ज़िन्दगी ही ग़ुम है 

किस राह की तुझे तलाश है
किस राह खोया है तेरा सनम
किस राह अटका तेरा दिल है 
क्यों आज चुप तेरी जुबां है?

कुछ बोल तू इन खामोश निगाहों से 
कुछ बोल तू इस खामोश जुबां से 
कि किस राह तेरा सनम खोया है 
कि किस कारण तेरा वज़ूद खोया है?

ओम नमो गणपतये नमः

परब्रह्म रुपम देवम 
प्रणाम है देव नित्यम
रूप प्रखर धार कर
वक्रतुंड लंबोदरम
दान दे आज धरा को
विघ्नकर्ता पाप का विनाश कर
उथ्थान कर मानव का
मानवता को प्रखर कर
गणपति गणेश गजनरेश 
शिव महिमा का है लम्बोदर
आज इस धरा पर प्रचार कर 
अपनी शक्ति से हे परब्रह्म 
तू मानवता को सद्बुद्धि दे 
ओम नमो गणपतये नमः 

जय जय है जगदंबे

जय जय है माँ दुर्गे 
जय जय है जगदंबे
तेरा ही आज मैं जप करूँ
तेरी ही आज में आरती करूँ
तज मोह आज संसार का
मैं तेरी ही अब भक्ति करूँ

जय जय है जगदंबे
जय जय है मात भवानी
अनुकंपा तेरी बस बनी रहे
जीवन में तेरी शक्ति रहे
सांसारिक मोह त्याग कर
मैं अब तेरी ही भक्ति करूँ 

जीवन में अब तेरी ही भक्ति रहे
संसार पर तेरी ही अनुकंपा रहे
अब में साँझ सवेरे
तेरी ही माला जपता रहूँ
सांसारिक मोह को त्याग कर
अब तेरी ही मैं भक्ति करूँ 

हे शिव

प्रखर प्रचण्ड त्रिनेत्र आज 
हे शिव तू अपना खोल दे 
पापमुक्त कर धरा को 
मनुष्य को तू तार दे 

बहुत हलाहल पी चुकी धरा 
आज तू अपना त्रिशूल धार ले 
हाला जीवन की बहुत पी चुका
अब तू मानव को तार दे 

प्रखर प्रचण्ड त्रिनेत्र अपना 
हे शिव आज तू खोल दे 
अर्धमूर्छित इस धरा को 
आज तू पापमुक्त कर तार दे  

Depth

Such is the depth of your love
Such is the depth of your affection
Such is the intensity of your feelings
That it draws me out of lost hope

Such is the depth of your words
Such is the depth of your thoughts
Such is the depth of your messages
That it draws me out of lost thoughts

Such is the depth of your call
Such is the depth of your voice
Such is the depth of your looks
That it draws me out of lost routes

Such is the depth of you love
Such is the depth of your voice
Such is the depth of your words
That is draws me away from death!!

Lost

Lost are the thoughts and words
As if scared to be chopped by swords
Broken are the life's cords
As if chopped off by the swords

Ink has dried with the heat
such that
I had to use my blood
To give shape to words

So scared is life today
as if 
There is no hope left
For 
Happiness has been lost to theft

Such is the state of mind
It seems to have lost of kind
Such is the state of heart
that
It has lost that love cart

अल्पविराम

कलम आज भीगी है अश्रुओं से
पत्तों की तरह बिखरे हैं विचार 
अल्पविराम सा लग गया है जीवन में 
अर्धमूर्छित हो चला है मष्तिस्क 

ह्रदय में आज बसी है जीवनहाला
जीवन भी भटक गया है
हर राह अंधकारमय है 
हर ओर छा रहा अँधियारा 

कलम से आज निकल रही अश्रुमाला
पी रहा आज मैं अपनी ही जीवनहाला
अर्धचंद्र सा ग्रहण लगा है जीवन में 
हर ओर छा रहा अंधियारा 

विस्मय में डूबा, बैठा मैं हलाहल से घिर 
नहीं दिखाई देता मुझे अब कुछ कहीं
ह्रदय में आज इतनी है जीवनहाला
कि सूर्य भी अर्धमूर्छित सा दिख रहा 


Until Death Do Us Apart

Thee are the center of my life
and
I shall live for thee
Until death do us apart

Walking with thee is my destiny
and
I shall walk the distance
Until death do us apart

Be it the happiness of life
or
Be it the saddest of experience
I shall live to see thy smile

You are my life's destiny
I shall live to see
Thee happy and always smiling
Until death do us apart

Thursday, June 23, 2016

तू

तू जब गुलाब सी यूँ खिलती है
मैं भँवरा बन वहीं मँडराता हूँ 
तू जब जाम से छलकती है 
मैं वहीं मयखाना बसा लेता हूँ

तू जब कहीं खिलखिलाती है 
मैं वहीं अपना घर बना लेता हूँ
जीवन के लम्बे इस सफ़र में
तुझे मैं हमसफ़र बनाए जाता हूँ

तू भले अपना राग गाती है 
मैं उसे ही जीवन संगीत बनाता हूँ
तू भले ही ना सुने मेरी
मैं फिर भी तेरी ही माला फेरता हूँ

कानों पे जो ताले हैं, बातों से पाले हैं
उनपर अपनी सोच की चाबियाँ लगा
बात जो बाक़ी है, आँखों से झाँकी है
उन बातों पर सोच की चाबियाँ लगा

तू एक नदिया, मारे अठखेलियाँ 
ठहरा पानी, खाऊँ हिचकोले 
फिर भी जिस ओर तू जाए
वहीं बहा चला आता हूँ

तू जब गुलाब सी यूँ खिलती है
मैं भँवरा बन वहीं मँडराता हूँ 
जीवन के लम्बे इस सफ़र में
तुझे मैं हमसफ़र बनाए जाता हूँ।।




Wednesday, May 25, 2016

पथिक

चला जा रहा अपने पथ पर
अनभिज्ञ अपने ध्येय से
जो मोड़ आता पथ पर
चल पड़ता पथिक उस ओर

विडम्बना उसकी यही थी
न मिला कोई मार्गदर्शक
अब तक केवल चला जा रहा था
अज्ञानी एक पथभ्रष्ट सा

हर पथ पर खाता ठोकर
हर मोड़ पर रुकता थककर
किन्तु फिर उठता चलता
अज्ञानी एक पथभ्रष्ट सा

जिस पथ चलता उठकर
जिस मोड़ चलता रूककर
हर पथ हर मोड़ उसको
लाता एक ही डगर पर

जीवन पथ की यही है कहानी
हर ओर है केवल विरानी
नहीं इसमें ऐसा कोई राही
जो बता दे तुम्हें मार्ग सही

चलना है तुमको केवल अकेले
हर पथ पर स्वयं को सम्भाले
सर्वज्ञ समीक्षा सदैव कर
सही दिशा का चयन है करना।।

सूखा आज हर दरिया

सूखा दरिया सूखा सागर
ख़ाली आज मेरा गागर
सूखे में समाया आज नगर
हो गई सत्ता की चाहत उजागर

बहता था पानी जिस दरिया में
आज लहू से सींच रहा वो धरा को
अम्बर से अंबु जो बहता था
आज ताप से सेक रहा वो धारा को

सूखा आज ममता का गागर
सूखी हर शाख़ हर पत्ता
नहीं छूटता फिर भी मोह मगर
लालच के परम पर है सत्ता

पैसे की धूम है हर ओर
नहीं इस लालच का कोई छोर
कितना तुम अपना गागर भरोगे
कितनो को और प्यासा मारोगे

जिनके श्रम से है अपनी तिजोरी भरी 
आज उनकी लाशों से है धारा भारी
बोझ ये तुम कर सकते हो हल्का
छोड़ कर लालच इस सत्ता का!!

Tuesday, April 19, 2016

Confined Thoughts

Confined by life are the thoughts today
Confined to life are the thoughts today
Confined by prospects are the thoughts today
Confined by future are the thoughts today

The thoughts though need to be free
They have been constrained by expectations
The thoughts though need to be varied
They are now shaped by the society

Control is what is confining the thoughts
Power to lead is guiding their existence
Greed to have more is leading their path
Existence is at core with no fear of wrath

Such is the state of thoughts today
That the thoughts have lost their aim
Calmness of the mind had been marred
Peace of the life has been charred

Freedom of thoughts is now curtailed
For the thoughts are implanted in mind
Freedom of thoughts is now confined
For the thoughts are wells constrained!!

Monday, March 28, 2016

नहीं तेरे लहू में वो रंग

लहू तेरा बहा है आज 
लुट रही कहीं तेरी अपनी लाज
नहीं किंतु तेरे लहू में वो रंग
नहीं उस लुटती लाज के कोई संग

कहीं दूर कोई धमाका हुआ
किसी का बाप, भाई, बेटा हताहत हुआ
छपा जैसे ही यह समाचार
गरमा गया सत्ता का बाज़ार  

नहीं तेरे लहू से इनको कोई सरोकार
नहीं तेरे लहू में मतों की झंकार
नहीं है तू कोई अख़लाक़ या रोहित
तेरी मृत्यु नहीं करती इन नेताओं को मोहित

देते हैं सम्प्रदाय का रंग ये लहू को
जब बोटी पर सेकते ये मतों की रोटी को
नहीं तेरे लहू में सम्प्रदाय का वो रंग
जो कर दे नेताओं की चीर निद्रा भंग।।



Monday, March 21, 2016

Pain of Humanity

 The day is lit with a torch
And
Sun has gone down the shade
For
The Violence has marred its march

Blood is shattered all across
Red is the color of even the moss
Culling humans is in the season
Death is drooling for this reason

The day is lit with the torch
For
The pen has started to scorch
And 
It has missed the beat of its march

Ink is spread on the floor
Thinking what pen is writing for
They call terrorist as martyr
Pen helps them in their satire

Sun is hiding now in the shades
For 
Terror strikes using even a spade
And
Human Rights are called to cover the fad

Blood is shattered on the grass
Politics has become terror's class
Culling humans is in the season
Politicians are minting on this reason

The day is lit with a torch
Culling humans is today's march
The pen has started to scorch
Death is now standing in the porch!!

Sunday, March 20, 2016

हृदयोदगार

चिंतन मनन की यह धरा थी
आज इसपर भी मंथन कर दिया
अनेकता में एकता की यह धरा थी
आज उसको भी तुमने तोड़ दिया

सागर मंथन से निकला विश पी
शिव शम्भु ने जग को तारा था
अब इस धरा मंथन का विश
कौन शिव बन पी पाएगा

उस युग में तांडव कर
शिव ने धरा से दानव को ललकारा था
इस युग में दानव के तांडव से
कौन शिव बन धरा को तर जाएगा

चिंतन मनन की यह धारा थी
आज इसपर भी मंथन कर दिया
उस विश से तो शिव ने तारा था
यह विश स्वयं लहू पीकर ही मानेगा

अनेकता में एकता की यह धरा थी
उसको तुमने आज तोड़ दिया
हंस कर जो गले मिलते धे
उस मुख को तुमने आज मोड़ दिया

चिंतन मनन की यह धरा थी
जिसपर अनेक होकर भी हम एक थे
अपने स्वार्थ को बहलाने के लिए
उस धरा को तुमने रक्तपान कर दिया।।

बरसों से यही सब चल रहा है

यही सब चल रहा है बरसों से
हो रहा सीताहरण सदियों से
सभ्यता का कर रहे चीरहरण
मना रहे शोक कर अपनो का मरण

ना स्वयं अब जिवीत  हैं 
ना जिवीत है इनमें मानवता
विलास का करते है सम्भोग
फैला रहे केवल दानवता

यही सब चल रहा है बरसों से
अम्ल बह रहा है नैनों से
कलम भी आज दासी हो चली
वो भी आज कोठे पर नीलाम हो चली

जागरूकता का नाम असहिष्णुता हो गया
पत्रकारिता राजनेताओं की रखैल हो चली
यही सब चल रहा बरसों से
सत्ता के गलियारों में अब भारत माता रो पड़ी

सीता को ना छोड़ा इन्होंने
द्रौपदी का भी चीर हरण कर दिया
कलाम को अब अपनी दासी बनाकर
भारत माँ को भी नीलाम कर दिया।।

They Forget That

They fill it to the hilt with rock
Claiming it to be something like stock
It always gives me jitters and shock
As is it is for them to price the life to mock

They say it as the freedom
When they themselves do it seldom
They call it as their right to speech
When they take on the system to impeach

But where they think they are right
Where they fight out with their might
They forget their own sight
When they themselves add to the plight

They seem to forget the days they did it
They seem to forget to contribute to it
All they do today is to stand and speak
All they do today is to stand and squeak

They forget that they too are responsible
They forget that they need to be sensible
They forget that they need to rise for nation
They forget that freedom too comes with a caution

They forget to use their brain when they speak
All they do today it to stand and squeak
They give it the name of freedom of kinds
When they forget to apply their fluid minds

They fill it to the hilt with rock
Claiming it to be something like stock
It always gives me jitters and shock
As is it is for them to price the life to mock!!

Monday, March 7, 2016

क्या घर मेरा बन जाएगा शिवाला

विष से भरा है आज मेरा प्याला 
जीवन मंथन की है यह हाला 
कटु है आज हर एक निवाला 
विष से भरा है आज मेरा प्याला 

कैसा है यह द्वंद्व जीवन का
हर पल है जैसे काल विषपान का 
कैसा है यह पशोपेश मेरा 
हर ओर दिखता मुझे विष का डेरा  

ना मैं शिव हूँ ना है मुझमें शिव 
ना धर सकूँ कंठ में विष की नींव 
पी लूँ  यदि हलाहल का यह प्याला 
क्या घर मेरा बन जाएगा शिवाला 

विष से भरा है आज मेरा प्याला 
जीवन मंथन की है यह हाला 
पी लूँ  यदि मैं यह हलाहल 
क्या बंद हो जाएगा जीवन का छल 

कटु है आज हर एक निवाला 
विष से भरा है हर एक प्याला 
पी लूँ  यदि मैं यह जीवन हाला 
क्या घर मेरा बन जाएगा शिवाला 

ना मैं शिव हूँ ना है मुझमें शिव
कैसे धरूँ कंठ में विष की नींव 
नहीं बन सकता मैं शिव की प्रतिमा 
नहीं है मुझमें अब इतनी महिमा 

कैसा है यह द्वंद्व जीवन का 
क्यों है हर पल मेरे विषपान का 
कर भी लूँ यदि मैं विषपान 
नहीं कर सकूँगा मैं जगत कल्याण॥ 

Sunday, March 6, 2016

तार आज धरा को

हर हर महादेव जय शिव शम्भो
बिगड़ी बना हर वर दे हमको
जिस पाताल में आज है धरा
जिस पाताल में है अथाह विश भरा
उस पाताल से धरा को तू निकाल
एक बार फिर आज बन तू त्रिकाल
हर हर महादेव जय शिव शम्भो
बन त्रिकाल पाप मुक्त कर तू धरा को
उठा त्रिशूल कर तू संहार आज
विकट रूप धर कर तू ये काज
सागर मंथन का विश पिया जो तूने
आज धरा को उस विश से मुक्त करा
हर हर महादेव जय शिव शम्भो
बन त्रिकाल तार आज धरा को




Wednesday, February 24, 2016

ख़बरों को हम बेचते हैं

कुछ पंक्तियाँ भारत के पराधिन मानसिकता वाले भारत के अजनबी अंग्रेज़ी भाषा के साहित्यकारिक पत्रकारों के लिए!!

छोड़ आए हम अपनी शर्मोहया
करते है बस बदज़ुबानी बयाँ 
देश की हमें परवाह नहीं
वामपंथ के हैं हम राही

करते हैं बस ख़ुदपर गुमान
नहीं देशभक्ति का हमपर निशान
चाहते हैं बस धन धन धन
सुनते हैं बस खन खन खन 

ख़बरों को हम बेचते हैं
नहीं बिकती तो नई बनाते हैं
सच से नहीं कोई सरोकार
नेताओं पर तो करते हैं परोपकार

आतंकवादी के मानवाधिकार मानते हैं
सेना का केवल अत्याचार मानते हैं
धर्मनिरपेक्षता हमारी शान है 
शाब्दिक दंगाइयों में हमारी पहचान है

फूँक देते है हम सच को 
बलि चाहे कोई चढ़ता रहे
बोलना हमारा मौलिक अधिकार है
क्या बोलते हैं हम ख़ुद नहीं जानते।।

We Have Had Enough

We have had it enough to face
Running against time's race
When the world is moving forward
We are made to march backwards

The words today shout out loud
Actions have diminished in the crowd
What we used to feel proud about
Is lost in anti-national sprout

We have had it enough to face
With you trying to make your case
India today is with its forces
Shun the human rights for terrorist torches

The nation today knows the fact
It can make out what to select
You can try to preach your view
To believe or not is nation's purview

We have had it enough to hear
Now we are all ready to Swear
And we swear by the Constitution
Don't need no body's damn permission

We today stand by the forces
Without wearing the media glasses
We have decide to quit those classes
Which always misleads the masses

Gone are the days when we followed
Gone are the days when we were bestowed
Today's youth need not follow the ordeal
For we have had enough that we now seal!! 

Tuesday, February 23, 2016

लहू के दो रंग

आज इस धरा पर लहू के दो रंग
एक चढ़ गया मातृभूमि को नमन करते
और एक हो गया श्वेत 
मातृभूमि का करते हुए शील भंग

वीर सपूत छाप रक्तिम छोड़ गया 
चढ़ गया माँ के चरणो भेंट
 श्वेत लहू धारक किंतु
कर रहा लाल माँ की ही कोख

लहू के दो रंग देखे मैंने
हुआ कितना मैं लज्जित
सीमा पर बलिदान दे रहा सैनिक
छाप रहा अराजकता यहाँ हर दैनिक

लहू के दो रंग हुए इस धरा पर
एक है रक्तिम और दूसरा श्वेत
एक लाल कर गया माँ की चुनर रंग
दूसरा अब भी कर रहा माँ का शील भंग।।

Monday, February 22, 2016

अभ्यास

जितना भी तुम अभ्यास कर लो
भारत नहीं तुम तोड़ पाओगे
प्रलय की भी शक्ति जोड़ लो
बाल बाँका नहीं कर पाओगे

ईश्वर ने है यह सृष्टि रचि
बनाया उसने यह भारत खंड
कितना भी तुम प्रयास करलो
रहेगा भारत सदैव अखंड

वर्षों से हुए बहुत प्रयास
किया इसने सब आत्मसात
जो भी आया यहां
रह गया यहीं का बनकर

जितना चाहे तुम उत्पात मचालो
कितना भी तुम प्रयास कर लो
ईश्वर ने है बनाया यह खंड
हम रखेंगे इसे सदैव अखंड।।

वन्दे मातरम की हुंकार

प्रहर अंतिम है रात्रि का
प्रहार अब हमें करना है
एक क्षण के लिए भी अब
अर्थ नहीं जानना चित्कार का

यूद्ध का उदघोश हुआ है
वीरों के बलिदान से
करना है अब अंत इसका 
आतंकियों की रक्तिम छाप से

ब्रह्मा मुहूर्त का बिगुल बजेगा
विजय के शंखनाद से
वीरों का सम्मान होगा
शत्रु की पराजय से

शत्रु को तुम परास्त करोगे
खड़ग कृपाण कटार से
विजय तुम नारा लगाना
वन्दे मातरम की हुंकार से।।

धरा के वीर

कहते नहीं जब थकते तुम ये बात
कितनी स्याह होगी अब ये रात
बिछाते हुए आतंकवाद की बिसात
छुप क्यूँ जाते हो यूँ अकस्मात्

किस अफ़ज़ल का तुम बदला लोगे
भारत के क्या तुम टुकड़े करोगे
हर अफ़ज़ल को एक पवन मारेगा
किसी मक़बूल को ना महाजन छोड़ेगा

कश्मीर का तुम स्वर बनते हो
उसी कश्मीर में नरसंहार करते हो
माँ के सपूतों का लहू बहकर
चिल्लाते हो लश्कर लश्कर

मत भूलो तुम भारत की सेना को
सदैव तत्पर है जो राष्ट्र रक्षा को
वीर हैं वो ऐसे माँ के सपूत
सुला देंगे तुमको बना कपूत

मत भूलो इस धरा के वीरों को
समाप्त कर देंगे जो तुम जैसो को
नहीं डरते जो किसी ललकार से
मिटा देंगे जो तुम्हें केवल एक हुंकार से।।

Saturday, February 20, 2016

कैसा है ये लोकतंत्र

कैसा है ये लोकतंत्र
कैसा है ये जनतंत्र
हैं एक मंच पर एकत्रित 
भारत विरोधी मित्र

स्वतंत्रता की अभिवक्ति का
करते हैं दुरुपयोग उस शक्ति का
करते हैं राष्ट्र विरोधी बातें
कहते हैं काली होंगी और रातें

करते हैं आपत्ति राष्ट्र ध्वज लहराने पर
लज्जित होते हैं वन्दे मातरम् बोलने पर
सर झुकाते हैं आतंकी के सम्मान में
नमन नहीं करते सैनिक के सम्मान में

राष्ट्र विरोधियों का देते हैं साथ
पढ़ते सदैव जात पात का पाठ 
हर समय देखते हैं सत्ता का स्वार्थ
राष्ट्र हित का नहीं करते परमार्थ

अन्ध्भक्त बन हम भी करते अनुसरण
नहीं समझते इसका कोई कारण
होती समाचारों में जो लीपा पोती
छुप जाती है सच्चाई नहीं हमें दिखती


Monday, February 15, 2016

ये रिश्ता हमारा

ये तेरा ये मेरा, ये रिश्ता हमारा
कैसा है ये ईश्वर का खेला
कि तू है मेरी जान 
कैसे रहूँ मैं तेरे बिन-२

जीवन की राहों में साथ हो तेरा
यही है सदैव विश्वास हमारा
करते हैं ईश्वर से यही हम प्रार्थना
कि संग तेरे ही जीवन है जीना - २

श्रिश्टी के रचियता की अनूठी कहानी
प्यार के साथ की विडम्बना है सहनी 
विचरण है करना कहीं है भटकना
रिश्ते की गाँठों को है सुलझाना-२

ये तेरा ये मेरा, ये रिश्ता हमारा
ईश्वर ने रचा है खेल ये सारा
कभी है साथ तो कभी हैं दूरियाँ
जैसे दो पाटों के बीच बहती है नदिया

ना खों विश्वास कभी तू हारकर
रहूँगा सदैव मैं तेरा ही बनकर
की तू है मेरी जान 

किया है ये जीवन बस तेरे नाम - २