Saturday, November 21, 2015

ना आज कोई रुख़्सार

नज़रों के सामने हमने वो देखा है
हर हस्ती को आज हँसते देखा है
ख़ुशनुमा आज हर रूह है
शबनम भी आज चमकती चाँद सी है

फैला है उजाला हर और 
बयार भी हल्की हल्की बहती है
आज क़ुदरत का नग़मा
सुन रहा मैं हर और

ना किसी की आज तवज्जो है
ना कोई कर रहा इंतेज़ार
ना आज अश्क़ हैं आँखो में
ना कोई कहीं रुख़्सार

नज़रों से आज हमने वही देखा है
ना तंज़ है कोई ज़िंदगी से
ना हमें कोई शिकवा किसी से
ना ही किसी है है अब इंतेज़ार

देखा था ख़्वाब जिनका
दूर फलक पर हुए वो जुदा
खो कर भी उन्हें लगता है आज
ज़िंदगी है मेरे खुदा तेरा ही साज

ना शिवा कोई हमें जुदाई का
ना कोई गिला बेवफ़ाई का
ना अश्क़ हैं आँखों में कोई 
ना कहीं मेरा कोई रुख़्सार





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