Saturday, September 26, 2015

कलम आज फिर आमादा है

कलम आज फिर आमादा है 
अपना रंग कागज़ पर बिखेरने को 
रोक नहीं पा रहे हम आज कलम को 
जो लिख रही हमारे ख्यालों को 

ना जाने क्यों हाथ भी साथ नहीं 
ना जाने क्यों कर रहे ये मनमानी 
आज कलम फिर आमादा है 
लिखने तो आवाज़ हमारी 

हर पल सोचते हैं खयालों को रोकना 
ना जाने क्यों दिमाग दुरुस्त नहीं आज 
कलम आज फिर आमादा है 
फिर आज दिमाग पर करने को काबू 

हर कोशिश है हमारी नाकाम 
ख़याल बन शब्द बिखेर रहे स्याही 
कैसे रोकें इन हाथों को 
जिनकी डोर आज है कलम के साथ 

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