Saturday, September 26, 2015

If it Makes Sense

I would stop criticizing
If it would make sense
I would stop hating
If only it would make sense

I would stop ruing 
Only if it would make sense
I would stop writing
Only if if would make sense

But the problem that I face
and
The problem what needs resolution
Is - Nothing that makes sense

Whatever you say or do
Doesn't make sense to me
Where ever you go in the world
Doesn't make sense to me

I could never relate to 
Ideology that you follow
I could never understand you
For 
Your existence doesn't make sense to me!1

Your Void

Down in the depth of heart
I feel a void today
I feel a bit different
For your absence is what I felt

You are not around me 
But
You are not gone for ever

You would surely return
But
You are not with me today

I love you for you are my life
I love you to be my companion
Your absence is being felt today
With that void deep in my heart

Thinking of you today
My heart is crying aloud
Mind is also seeking solace
But 
Without you threes no eternal peace

कलम आज फिर आमादा है

कलम आज फिर आमादा है 
अपना रंग कागज़ पर बिखेरने को 
रोक नहीं पा रहे हम आज कलम को 
जो लिख रही हमारे ख्यालों को 

ना जाने क्यों हाथ भी साथ नहीं 
ना जाने क्यों कर रहे ये मनमानी 
आज कलम फिर आमादा है 
लिखने तो आवाज़ हमारी 

हर पल सोचते हैं खयालों को रोकना 
ना जाने क्यों दिमाग दुरुस्त नहीं आज 
कलम आज फिर आमादा है 
फिर आज दिमाग पर करने को काबू 

हर कोशिश है हमारी नाकाम 
ख़याल बन शब्द बिखेर रहे स्याही 
कैसे रोकें इन हाथों को 
जिनकी डोर आज है कलम के साथ 

वेदना विरह की

व्यथित आज मन है मेरा 
व्यथित यही चित्त 
व्यथा मस्तिस्क में रह रही 
हलचल ये जीवन में मचा रही 

कारक नहीं समझ में आया 
किया चिंतन मनन बहुत 
देवों की भी कि आराधना 
"नहीं पता" है उनका भी कहना 

चेष्टा थी कि तुमसे पूछूँ 
संग बैठ तुम्हारे मैं सोचूं 
किन्तु वृद्धि हुई पीड़ा में और भी 
जब जाएगा चेतन तुम्हारी विरह में 

वेदना विरह की है ये जाना 
व्यथा जुडी है वेदना से माना 
देव भी अनभिज्ञ थे इससे 
क्योंकि तार कहीं जुड़े थे तुमसे 

पिया मिलन

नैन ताके राह किस गुजरिया की 
छोड़ मँझधार हुई मैं पिया की 
नहीं मोहे अब बैर किसी से 
नाहीं चाहूँ मैं देवोँ की डगरिया 

पिया संग है मोहे अब जीना 
पिया के लिए धड़के अब मोरा जियरा 
रूठे देव तो रुठने दो उनको 
मनाऊँगी उनको पिया माना है जिनको 

कहे अब नैन ताके राह तिहारी 
काहे मन हुआ जाए है व्याकुल 
आज मिलन है पिया संग मोरा 
क्या इसी कारण ओढ़ाया है कोरा??

Friday, September 25, 2015

बिछड़ तोसे जिया नहीं जाए

बदरा छाए, नैनो में बदरा छाए
आज पीह से मिलन की आस में
नैनो में बदरा छाए, बदरा छाए
आज फिर मिलन की आस में

कहें तोसे कैसे पिया
कहाँ कहाँ ढूंढे तुझे जिया, ढूंढे जिया.........

कहूँ कैसे, थामूँ कैसे, रोकूँ कैसे
नीर जो बरसे नैनो से, नैनो से नीर जो बरसे
बदरा छाए तोसे मिलन की आस में
नैना नीर बहाए तोहे देखन की आस में

बदरा छाए, नैनो से नीर बहाए
जिया नहीं जाए पिया
बिछड़ तोसे जिया नहीं जाए
क्यों दूर तू जाए मोसे क्यों दूर तू जाए       .......................................................पियाा 

घनघोर घटा छाई

घनघोर घटा छाई  रे, घनघोर घटा छाई  रे
मेरे मीत के मिलन की बेला आई रे
आई रे मिलन की बेला आई रे
घनघोर घटा छाई रे - २

मन व्याकुल हो चला, मन व्याकुल हो चला
ना जाने कौन चितचोर इसे मिला
जाने कौन दिशा संग ये किसके चला
मन व्याकुल हो चला - २

अब कित जाऊं मैं, कि घनघोर घटा छाई रे
किसको कहूँ मैं, कि मन व्याकुल हो चला
कैसे कहूँ, कित जाऊं घनश्याम
कि द्वार तेरे आया ओ मेरे राम, ओ मेरे राम

कैसे कहूँ किसे कहूँ, घनघोर घटा छाई
ओ घनश्याम, मिलन की बेला आई
कैसे मिलूं मैं कैसे कहूँ मनवा
कि मन व्याकुल हुआ, मिलन को -२

Tuesday, September 15, 2015

अपनो में बेगाने

अफ़सुर्दा हुए जाते हैं अफसानों में 
अजनबी आज बन बैठे हैं हम अपनों में 
बेगानो से क्या शिकवा करें अब 
अपने ही साथ नहीं हमारे जब 

बैठ बेगानो में तन्हा बसर करते थे 
अब तो अपनों में खुद बेगाने लगते हैं 
साथ ना जाने कहाँ छूट गया हमसे 
अब तो बस सवालों में सहूलियत ढूंढते हैं 

एक ज़माना बीत गया सा लगता है 
अब तो हर साथ भी तन्हा सा लगता है 
तकल्लुफ उठा कर भी साथ बेअसर है 
जैसे डूबती कश्ती से माझी बेखबर है 

अफसानों में अब कहीं हम नहीं 
अपनों में भी अब हम अपने नहीं 
छूट गया है वो जहाँ कहीं
हुआ करते थे जहां शक के घेरे नहीं॥ 


Wednesday, September 2, 2015

शिवामृत

आज मधुशाला में इतनी मधु नहीं
कि बुझ जाए जीवन की प्यास
किस डगर तू चलेगा राही
किस राह की कैसी आस
पाने को क्या पाएगा चलते
बैठ यहाँ, यहीं बनाएं एक शिवाला
क्यों ढूँढू मैं कहीं कोई मधुशाला
आ पीते हैं बैठ यहाँ शिवामृत का प्याला

आरक्षण का अभिशाप

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई 
बाँट चुके भगवान को 
धरती बांटी अम्बर बांटा 
अब ना बांटो इंसान को 

धर्म स्थानो पर लहू बहाया 
कर्मभूमि को तो छोड़ दो 
ज्ञान के पीठ में अब तुम 
ज्ञान का सागर मत बांटो 

जाट गुज्जर पाटीदार जो भी हो
 इसी धरा की तुम संतान हो 
बहुत हो चुके बंटवारे धरा के 
अब और ना बांटों इंसानो को 

आरक्षण पद्धति अभिशाप है 
रोकती राष्ट्र का प्रगति पथ है 
त्याग अपनी मांग आरक्षण की 
राष्ट्र को तुम बलशाली बनाओ॥ 

आरक्षण का दानव

आरक्षण की मांग पर  जल रहा, 
राष्ट्र का कोना कोना 
रोती बिलखती जनता को  
देख रहे नेता तान अपना सीना 

आरक्षण की अगन में पका रहे 
राष्ट्र नेता अपनी रोटी 
बन गिद्द नोच नोच खा रहे 
जनता की बोटी बोटी 

रगों में आज लहू नहीं 
बह रही है जाति 
आदमी की भूख रोटी की नहीं 
हो गई है आरक्षण की आदि 

पहले देश बाँटा धर्म के नाम पर 
अब बाँट रहे बना जाति की पाँति 
राष्ट्र एकता को ताक पर रखकर 
नेता भर रहे अपना घरबार 

कोई बताये इन नेताओं को 
क्या है आरक्षण का दानब 
आरक्षण आतंकवाद का प्रारूप है 
रोकता है राष्ट्र का प्रगति पथ 

आतंकवाद है आज राष्टृ में 
धर्म के बँटवारों से 
आरक्षण यदि फैला उसी गति से 
तो आतकंवाद उपजेगा सत्ता के गलियारों से 

अभी भी समय है जागने का 
जातिवाद आरक्षण को त्यागने का 
पहले बांटा राष्ट्र धर्म के नाम पर 
अब बांटने चले धर्म को जाति के नाम पर 

धर्मान्धता

धर्मान्धता की आंधी चली
उसमें बह चली राष्ट्र की अस्मिता 
तुम बोले मैं बड़ा, हम बोलेन हम बड़े 
किन्तु क्या कभी सोचा है राष्ट्र हमसे बड़ा 

पहले मानव ने धरा बांटी 
फिर बने धर्म के अनुयायी 
ना जाने कहाँ से पैदा हुए नेता 
ले आये बीच में धर्मान्धता 

मानव को मानव से बांटा 
चीर दी धरा की छाती 
लकीरें खींच दी सर्वशक्तिशाली पर 
खड़े हो हाशिये पर 

ना आज मानवता जीवित है 
ना है राष्ट्रप्रेम से कोई नाता 
हर छोर पर दिखती है आज 
धर्मान्धता ही धर्मान्धता॥