Saturday, November 21, 2015

ना आज कोई रुख़्सार

नज़रों के सामने हमने वो देखा है
हर हस्ती को आज हँसते देखा है
ख़ुशनुमा आज हर रूह है
शबनम भी आज चमकती चाँद सी है

फैला है उजाला हर और 
बयार भी हल्की हल्की बहती है
आज क़ुदरत का नग़मा
सुन रहा मैं हर और

ना किसी की आज तवज्जो है
ना कोई कर रहा इंतेज़ार
ना आज अश्क़ हैं आँखो में
ना कोई कहीं रुख़्सार

नज़रों से आज हमने वही देखा है
ना तंज़ है कोई ज़िंदगी से
ना हमें कोई शिकवा किसी से
ना ही किसी है है अब इंतेज़ार

देखा था ख़्वाब जिनका
दूर फलक पर हुए वो जुदा
खो कर भी उन्हें लगता है आज
ज़िंदगी है मेरे खुदा तेरा ही साज

ना शिवा कोई हमें जुदाई का
ना कोई गिला बेवफ़ाई का
ना अश्क़ हैं आँखों में कोई 
ना कहीं मेरा कोई रुख़्सार





Sunday, November 15, 2015

कैसी ईश्वर की श्रिश्टी

साँझ पड़े बैठा नदिया किनारे
सोच रहा मैं बैठ दरख्त के सहारे
कितनी सरल कितनी मधुर है ये बेला
है कौन सा ईश्वर का ये खेला

संगीतमय है जैसी ये लहरों की अठखेलियाँ
कितनी मद्धम है पंछियों की बोलियाँ
कहीं दूर धरा चूमता गगन
कौन से समय में लगाई ईश्वर ने इतनी लगन

कितनी सुहानी लग रही है ये बेला
देख रहा था नदिया में मैं मछलियों का खेला
साँझ पड़े बैठा नदिया किनारे
देख रहा ये मंज़र मैं बैठ दरख्त सहारे

कैसी है यह ईश्वर की श्रिश्टी उसकी माया
सोच रहा मैं जब साँझ का धुँधलका छाया
संध्या सुहानी, मधुर थी वो बेला
देख रहा था सारा मंज़र बैठ मैं अकेला

विचारों की गति थी जैसे नदिया की धारा
ग़ज़ब लग रहा था मुझे जग सारा
कैसी है यह ईश्वर की माया, कैसी उसकी श्रिश्टी
ना जाने किस दिन बन जाएगा यही सब माटी।।




Wednesday, October 21, 2015

How I wish

How I wish life had Control+Z
I would let many records flee
Nothing would have required a plea
I wouldn't have to go down on my knee

I could have undone my accident
I could have set a precedent
I could have undone the first love
I could have undone the bullet cove

How I wish life had Control+Z
I would let many records flee
I would have undone my erred jobs
I would have undone manager's blobs

I could have undone so much
To reduce the sourness of life
To say the least of all
I could have undone you 

For you have been one of the reason
For you have been the source of treason
You have added hell lot to my stress
You did all you could to me to suppress

Oh Yeah! I want you undo you
But, sad Life doesn't have Control+Z
I have to live you that experience and memory
I still wouldn't go down on my knee

I would prefer to eject one of us
Either you from my circle 
OR
Myself from your circle

I wish life had that Control+Z
I would have made you flee
Now, I need to do it right
Move away to keep you away from Sight!!

Please Come Back

Why and How I am thinking
Without you I am living
Life's boat seems to be sinking
Deep in memories, I am drowning

What and When would you be back
To rearrange life's rack
Moments now is what I am counting
The task itself seems to be daunting

The heat of loneliness is scorching
Where am I lost am searching
Without you life seems to be at halt
Who should I blame for this fault

Every day every moment I am waiting
Moments now is what I am counting
Deep in your memories, I am sinking
When would you be back, I am thinking



Monday, October 12, 2015

नवरात्रों का त्यौहार

नवरात्रों का त्यौहार आया 
माता का पर्व आया 
घर घर अब बैठेगी चौकी 
बारी है घट स्थापना की 

चौक में पंडाल सजेगा 
बीज शंख और ताल बजेगा 
बजेंगे अब ढोल नगाड़े 
खेलेंगे गरबा साँझ तले 

माँ का आशीर्वाद निलेगा 
यह सोच हर काज बनेगा 
नव कार्यों की नीवं सखेंगे 
हर किसी के सपने सजेंगे 

नवरात्र के महिमा अनोखी 
माँ खुद बन जाए सखी 
साथ मेरे वो गरबा रचे 
ढोल तासों में सुर पर नाचे 

दुर्गा भवानी चंडी काली 
हर नाम में है उसकी लाली 
माँ है वो जग पालन करेगी 
दुष्टों का वो नाश करेगी 

इस नवरात्र है मेरी प्रार्थना 
घर मेरे तू सुख शान्ति लाना 
इस राष्ट्र जो है घर मेरा 
फिर से एक बार कर दे सुनहरा

भ्रष्टाचार का तू नाश कर दे 
भक्तों का भविष्य उज्जवल कर दे 
नाश कर तू देशद्रोहियों का 
आरम्भ कर दे उसके पतन का 

इस नवरात्र मेरी यही अर्चना है 
 बस यही है मेरी प्रार्थना 
सूखे को तू कर दे हरा 
फसलों से लहलहा दे यह धरा 

आशीर्वाद दे तू माँ अम्बे 
कोई अब भूखा ना सोये 
हर घर में जले चूल्हा 
किसी के पेट की  जले॥ 

नेताओं का धर्म

आज के नेताओं का धर्म क्या है 
किसकी वो करते हैं पूजा 
कभी हुई ऐसी जिज्ञासा 
कभी उठा है कोई ऐसा प्रश्न 

गौर करोगे तो जानोगे उनकी जात 
राजनितिक अभिलाषा है उनका धर्म 
करते हैं वो सत्ता की पूजा 
नहीं पैसे से बढ़कर उनके लिए कोई दूजा 

कोई बड़ा नहीं कोई छोटा नहीं 
उनके लिए सर्व धर्म तुच्छ हैं 
जिस राह पर वो चलते हैं 
राजनीति है उसका मर्म 

विष धर्मनिरपेक्षता का फैलाते हैं 
कर अधर्म एवं जातिवाद की राजनीति 
कसौटी क्या है उनके धर्म की 
वाही आज की है सबसे बड़ी अनीति 

फैला अराजकता का द्वंद्व 
बैठ सकते हैं अपनी ही रोटी 
जनता की हो चाहे बोटी बोटी 
चलते हैं ये धर्म की राजनीति॥ 

सत्ता का लालच देखो

सत्ता का लालच देखो 
देखो इनकी मंशा 
नहीं किसी को छोड़ा इन्होने 
भारत माँ तक को है डंसा 

आरक्षण पर राजनीति खेल रहे 
कर रहे देश के टुकड़े 
जात पात में हमको बाँट रहे 
कर रहे धर्म के टुकड़े 

सूखे की राजनीति खेली 
खेली इन्होने लहू की होली 
दम्भ के ठहाकों के बीच 
कर रहे मृतात्मा पर ठिठोली 

नहीं इन्हें कोई लज्जा 
धर्म को बना दिया है कर्जा 
कहते खुद को धर्मनिरपेक्ष हैं 
करके धर्मों का बंटवारा 

इनकी सत्ता का लालच देखो 
इनकी मंशा क्या है जानो 
चुनाव में मत देते हो तुम 
उससे पहले प्रत्याशी को तो जानो॥ 

Saturday, September 26, 2015

If it Makes Sense

I would stop criticizing
If it would make sense
I would stop hating
If only it would make sense

I would stop ruing 
Only if it would make sense
I would stop writing
Only if if would make sense

But the problem that I face
and
The problem what needs resolution
Is - Nothing that makes sense

Whatever you say or do
Doesn't make sense to me
Where ever you go in the world
Doesn't make sense to me

I could never relate to 
Ideology that you follow
I could never understand you
For 
Your existence doesn't make sense to me!1

Your Void

Down in the depth of heart
I feel a void today
I feel a bit different
For your absence is what I felt

You are not around me 
But
You are not gone for ever

You would surely return
But
You are not with me today

I love you for you are my life
I love you to be my companion
Your absence is being felt today
With that void deep in my heart

Thinking of you today
My heart is crying aloud
Mind is also seeking solace
But 
Without you threes no eternal peace

कलम आज फिर आमादा है

कलम आज फिर आमादा है 
अपना रंग कागज़ पर बिखेरने को 
रोक नहीं पा रहे हम आज कलम को 
जो लिख रही हमारे ख्यालों को 

ना जाने क्यों हाथ भी साथ नहीं 
ना जाने क्यों कर रहे ये मनमानी 
आज कलम फिर आमादा है 
लिखने तो आवाज़ हमारी 

हर पल सोचते हैं खयालों को रोकना 
ना जाने क्यों दिमाग दुरुस्त नहीं आज 
कलम आज फिर आमादा है 
फिर आज दिमाग पर करने को काबू 

हर कोशिश है हमारी नाकाम 
ख़याल बन शब्द बिखेर रहे स्याही 
कैसे रोकें इन हाथों को 
जिनकी डोर आज है कलम के साथ 

वेदना विरह की

व्यथित आज मन है मेरा 
व्यथित यही चित्त 
व्यथा मस्तिस्क में रह रही 
हलचल ये जीवन में मचा रही 

कारक नहीं समझ में आया 
किया चिंतन मनन बहुत 
देवों की भी कि आराधना 
"नहीं पता" है उनका भी कहना 

चेष्टा थी कि तुमसे पूछूँ 
संग बैठ तुम्हारे मैं सोचूं 
किन्तु वृद्धि हुई पीड़ा में और भी 
जब जाएगा चेतन तुम्हारी विरह में 

वेदना विरह की है ये जाना 
व्यथा जुडी है वेदना से माना 
देव भी अनभिज्ञ थे इससे 
क्योंकि तार कहीं जुड़े थे तुमसे 

पिया मिलन

नैन ताके राह किस गुजरिया की 
छोड़ मँझधार हुई मैं पिया की 
नहीं मोहे अब बैर किसी से 
नाहीं चाहूँ मैं देवोँ की डगरिया 

पिया संग है मोहे अब जीना 
पिया के लिए धड़के अब मोरा जियरा 
रूठे देव तो रुठने दो उनको 
मनाऊँगी उनको पिया माना है जिनको 

कहे अब नैन ताके राह तिहारी 
काहे मन हुआ जाए है व्याकुल 
आज मिलन है पिया संग मोरा 
क्या इसी कारण ओढ़ाया है कोरा??

Friday, September 25, 2015

बिछड़ तोसे जिया नहीं जाए

बदरा छाए, नैनो में बदरा छाए
आज पीह से मिलन की आस में
नैनो में बदरा छाए, बदरा छाए
आज फिर मिलन की आस में

कहें तोसे कैसे पिया
कहाँ कहाँ ढूंढे तुझे जिया, ढूंढे जिया.........

कहूँ कैसे, थामूँ कैसे, रोकूँ कैसे
नीर जो बरसे नैनो से, नैनो से नीर जो बरसे
बदरा छाए तोसे मिलन की आस में
नैना नीर बहाए तोहे देखन की आस में

बदरा छाए, नैनो से नीर बहाए
जिया नहीं जाए पिया
बिछड़ तोसे जिया नहीं जाए
क्यों दूर तू जाए मोसे क्यों दूर तू जाए       .......................................................पियाा 

घनघोर घटा छाई

घनघोर घटा छाई  रे, घनघोर घटा छाई  रे
मेरे मीत के मिलन की बेला आई रे
आई रे मिलन की बेला आई रे
घनघोर घटा छाई रे - २

मन व्याकुल हो चला, मन व्याकुल हो चला
ना जाने कौन चितचोर इसे मिला
जाने कौन दिशा संग ये किसके चला
मन व्याकुल हो चला - २

अब कित जाऊं मैं, कि घनघोर घटा छाई रे
किसको कहूँ मैं, कि मन व्याकुल हो चला
कैसे कहूँ, कित जाऊं घनश्याम
कि द्वार तेरे आया ओ मेरे राम, ओ मेरे राम

कैसे कहूँ किसे कहूँ, घनघोर घटा छाई
ओ घनश्याम, मिलन की बेला आई
कैसे मिलूं मैं कैसे कहूँ मनवा
कि मन व्याकुल हुआ, मिलन को -२

Tuesday, September 15, 2015

अपनो में बेगाने

अफ़सुर्दा हुए जाते हैं अफसानों में 
अजनबी आज बन बैठे हैं हम अपनों में 
बेगानो से क्या शिकवा करें अब 
अपने ही साथ नहीं हमारे जब 

बैठ बेगानो में तन्हा बसर करते थे 
अब तो अपनों में खुद बेगाने लगते हैं 
साथ ना जाने कहाँ छूट गया हमसे 
अब तो बस सवालों में सहूलियत ढूंढते हैं 

एक ज़माना बीत गया सा लगता है 
अब तो हर साथ भी तन्हा सा लगता है 
तकल्लुफ उठा कर भी साथ बेअसर है 
जैसे डूबती कश्ती से माझी बेखबर है 

अफसानों में अब कहीं हम नहीं 
अपनों में भी अब हम अपने नहीं 
छूट गया है वो जहाँ कहीं
हुआ करते थे जहां शक के घेरे नहीं॥ 


Wednesday, September 2, 2015

शिवामृत

आज मधुशाला में इतनी मधु नहीं
कि बुझ जाए जीवन की प्यास
किस डगर तू चलेगा राही
किस राह की कैसी आस
पाने को क्या पाएगा चलते
बैठ यहाँ, यहीं बनाएं एक शिवाला
क्यों ढूँढू मैं कहीं कोई मधुशाला
आ पीते हैं बैठ यहाँ शिवामृत का प्याला

आरक्षण का अभिशाप

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई 
बाँट चुके भगवान को 
धरती बांटी अम्बर बांटा 
अब ना बांटो इंसान को 

धर्म स्थानो पर लहू बहाया 
कर्मभूमि को तो छोड़ दो 
ज्ञान के पीठ में अब तुम 
ज्ञान का सागर मत बांटो 

जाट गुज्जर पाटीदार जो भी हो
 इसी धरा की तुम संतान हो 
बहुत हो चुके बंटवारे धरा के 
अब और ना बांटों इंसानो को 

आरक्षण पद्धति अभिशाप है 
रोकती राष्ट्र का प्रगति पथ है 
त्याग अपनी मांग आरक्षण की 
राष्ट्र को तुम बलशाली बनाओ॥ 

आरक्षण का दानव

आरक्षण की मांग पर  जल रहा, 
राष्ट्र का कोना कोना 
रोती बिलखती जनता को  
देख रहे नेता तान अपना सीना 

आरक्षण की अगन में पका रहे 
राष्ट्र नेता अपनी रोटी 
बन गिद्द नोच नोच खा रहे 
जनता की बोटी बोटी 

रगों में आज लहू नहीं 
बह रही है जाति 
आदमी की भूख रोटी की नहीं 
हो गई है आरक्षण की आदि 

पहले देश बाँटा धर्म के नाम पर 
अब बाँट रहे बना जाति की पाँति 
राष्ट्र एकता को ताक पर रखकर 
नेता भर रहे अपना घरबार 

कोई बताये इन नेताओं को 
क्या है आरक्षण का दानब 
आरक्षण आतंकवाद का प्रारूप है 
रोकता है राष्ट्र का प्रगति पथ 

आतंकवाद है आज राष्टृ में 
धर्म के बँटवारों से 
आरक्षण यदि फैला उसी गति से 
तो आतकंवाद उपजेगा सत्ता के गलियारों से 

अभी भी समय है जागने का 
जातिवाद आरक्षण को त्यागने का 
पहले बांटा राष्ट्र धर्म के नाम पर 
अब बांटने चले धर्म को जाति के नाम पर 

धर्मान्धता

धर्मान्धता की आंधी चली
उसमें बह चली राष्ट्र की अस्मिता 
तुम बोले मैं बड़ा, हम बोलेन हम बड़े 
किन्तु क्या कभी सोचा है राष्ट्र हमसे बड़ा 

पहले मानव ने धरा बांटी 
फिर बने धर्म के अनुयायी 
ना जाने कहाँ से पैदा हुए नेता 
ले आये बीच में धर्मान्धता 

मानव को मानव से बांटा 
चीर दी धरा की छाती 
लकीरें खींच दी सर्वशक्तिशाली पर 
खड़े हो हाशिये पर 

ना आज मानवता जीवित है 
ना है राष्ट्रप्रेम से कोई नाता 
हर छोर पर दिखती है आज 
धर्मान्धता ही धर्मान्धता॥ 

Friday, August 21, 2015

पशोपेश

सामने मेरे इतना नीर है 
बुझती नहीं फिर भी मेरी प्यास है 
जग में बहती इतनी बयार है 
रुकी हुई फिर भी मेरी स्वांश है 

साथ मेरे अपनों की भीड़ अपार है 
फिर भी जीवन में एज शुन्य है 
चहुँ और फैला प्रकाश है 
फिर भी जीवन यूँ अंधकारमय है 

नहीं जानता जीवन की क्या मंशा है 
नहीं जानता और क्या मेरी चाह है 
सोच रहा आज मैं खड़ा हर दोराहे पर 
किस ओर किस डगर मेरी राह है 

आशा निराशा के बीच झूल रहा आह मैं 
पशोपेश में सोच रहा आज मैं 
किसका साथ आज दूँ मैं 
किसका हाथ पकड़ अपनी राह चुनू मैं

Thursday, August 20, 2015

धर्मनाश

बैठे सहर से सहम कर 
सोच रहे हैं अपने करम 
रहना है हमें इसी जहाँ में 
जहां बदलते हर कदम धर्म 

भूल कर जीता है इंसान 
इंसानियत का मूल धर्म 
उसका धर्म है सबसे ऊँचा 
पाल लिया है बस ये भ्रम 

प्यार मोहब्बत और जज़्बात 
नहीं है आज इनका कोई मोल 
धर्म के नाम पर यह भी कह दिया 
नहीं है ये दुनिया गोल 

धर्म के नाम पर आज इंसान 
बन गया है दुश्मन जहाँ का 
धर्म रक्षा के नाम पर 
रास्ता पकड़ लिया है धर्मनाश का 

भूल गया है आज इंसान 
धर्म से नहीं है उसका प्रारूप 
बोल गया है आज इंसान 
धर्म लेता है उसका ही रूप 

छोड़ साथ इंसानियत का 
बन गया है वो हैवान 
प्यार मोहब्बत इस इस दुनिया में 
फैला रहा वो अपना आक्रोश 

Tuesday, August 18, 2015

We Have Arrived

Wake up to the alarm of Time
We have arrived finally
Though we were just around here
But now we have arrived finally

We had given the zero to the world
But the world thought we were zero
We had given economics to the world
But the world thought ill of our economy

We were the nation of unity
But the world saw only diversity
Time and again we were attacked
The World only robbed us, being mighty

Now the time has come for us
To turn the tables and show them
Be it Economics or be it Science
We have proven that we have arrived

Long gone are the days we lived in shadow
Now we have reached the Mars
Not just that being our accomplishment
We have also launched satellites for them

Now is the time the Youth is geared up
Now is the time India has arrived
Long gone are the days we strived
Now are the days to be mesmerized

The World now has to gear up
To face the pace of India
Contained we were for ages
But Now We Have Arrived!!!

आधी रात में न्यायपालिका खुली

आधी रात में न्यायपालिका खुली 
लगी न्याय की बोली 
जनता वहां सो रही थी
खुली यहाँ  न्याय की पोथी 

एक आतंकी को बचाने 
आये धर्मनिरपेक्ष नाटक रचाने 
कितना धन कितना परिष्श्रम 
वो भी एक हत्यारे बचाने

यदि यही कर्म करने हैं 
तो खोल दो न्याय द्वार 
चौबीसों घंटे खोलो वो पोथी 
करो हर घडी हर पल न्याय 

अच्छे दिन आएँगे कहकर 
लगाईं थी तुमने पुकार 
अब उसको बनाकर हुंकार 
करोड़ो को दिलवाओ न्याय 

एक आतंकी के लिए जब 
खुले आधी रात को द्वार 
 मत बंद करो तुम उनको 
दो एक सा व्यवहार सबको 


धर्मनिरपेक्ष गुलाम

कहते हैं वो टोपी पहनते हैं 
जा कर दुआ सलाम करते हैं 
क्या बदल सकते हैं का इतिहास 
क्या करा सकते हैं सच का आभास

चेहरा सच का देखने को कहते हैं
क्या खुद के सच से वो अवगत हैं 
धर्म संप्रदाय की बात करते हैं 
क्या अपने धर्म से  परिपूर्ण हैं 

इफ्तार में हम नहीं जाते 
वो कहते हमें सांप्रदायिक हैं 
टोपी हम नहीं पहनते 
वो कहते हमें काफ़िर है 

अरे मंदिर मस्जिद में अंतर नहीं है 
अंतर तुम्हारे अपने मन में है 
धर्म की राजनीति करते हो 
और हमें अधर्मी कहते हो 

मान लेते हैं हम तुम्हारी बात 
 कहेंगे हम भी ईद मुबारक साथ तुम्हारे 
बस एक बार मस्जिद में बैठ 
वो प्रसाद मोलवी को खिला दो

अरे धर्मनिरपेक्षता के गुलामों 
चलो साथ कदम से कदम मिला
यदि मस्जिद का फतवा मानते हो 
तो जरा गीता का भी मान कर लो!!


Are We Independent

From morning till evening
We slog to make living
From night to dawn
We spend time Dreaming

Hope is the word we rely on
Time is what we con
Everyday & every night
We try to gather our might

Still we are someone's slave
Though we try to be brave
Knowing that we end in grave
We still try our best to be brave

We serve for family
But, that's not our slavery
We serve in our community
But that doesn't bring the calamity

Still we are born to be slave
Slave to those who make matters grave
Those who rule the way we think
Those who rule the way we wink

We are slaves to the Politicians
We are slave to the Mathematicians
We are slave of these abnormals
Who tend to show they solve our problems

Media is another one to enslave us
They serve their poison to us
Yet we think we are independent
Though we wear their thought pendant

We are independent only in our thoughts
Yet our life is a symbol of slavery
Slaves is what we would be
Till we decide to break the boundary!!!

Sunday, August 9, 2015

खामोशियाँ

खामोशियाँ मेरी पहचान है 
कहीं दूर लफ़्ज़ों की दूकान है 
पथ्थर से सर्द आज मेरे होंठ हैं 
जुबां भी अब बेजान है 

ये ज़िन्दगी जिस मोड़ पर है 
खामोशियों में ही मेरी आवाज़ है 
दफ़न है आज दर्द भी 
हर मोड़ पर तेरी याद है 

खामोशियाँ आज मेरा अक्स हैं 
खामोशियों से ही मेरी पहचान है 
पर ना काने  है ये नादान दिल मेरा 
ढूंढता है तुझे देख अक्स तेरा 

ना जा अब तू दूर मुझसे 
कि खो देंगे हम खुद को खुदसे 
खामोशियों से भरी ये  ज़िन्दगी 
कहीं समा जाएगी खामोशियों में ॥ 

Tuesday, July 28, 2015

कलाम को आखिरी सलाम

खुशनुमा जहाँ को जो कर गए 
अवाम के पास अपना जो नाम छोड़ गए 
खुदा  के उस बन्दे को सलाम 
ए पी जे अब्दुल कलाम को मेरा सलाम 

दुनिया में जो भारत की साख बना गए 
अपने कर्मों से जो भारत का नाम कर गए 
उस हस्ती को मेरा सलाम 
ए पी जे अब्दुल कलाम को मेरा सलाम

कर्मठ नेता जिसका था कर्म में विश्वास
देता रहा ज्ञान जब तक निकली नहीं आखिरी श्वाश 
ऐसे कर्मद कलाम को सलाम 
भारत के सच्चे सपूत को सलाम ॥ 

The Blast

When they cause that blast
They just leave us aghast
In shock and surprise
We look for some reprieve

But they being they
Just stick to the Guns
They think they would martyr
To be with God in heaven

Least they think they would rot in hell
For spreading the gun powder smell
To spoil the beauty of life
They are ought to be sliced with knife

When they open that indiscriminate fire
In the hell they light up their pyre
Off they would be kicked on the butt
Wouldn't get even a single virgin in their hut

For the light they burn in their home
With the blood of innocent humans
They are bound to rot in hell
Certainly not to bound in any divine spell

When they cause that blast on earth
They prepare themselves for dearth
The dearth for mercy in the court of humanity
The dearth of mercy to be in divinity!!!

Be in Sight

I will love you with all my might
Never go away from my sight
I will make everything go right
Please don't add to my plight

Be the beauty in my life's dome
let the bygones be bygone
I will keep loving you through night
Just don't disappear from my sight

I can feel the chill in the summer
I can see that lame runner
Like a bird you may fly
Taking my love far far away

I promise I would always love you
Let me for always be your beau
I don't want to lose you even in dream
For life be my flower be my cream

Never go away from my sight
For you make my life so bright
I always lived trough the dark shades
Never ever seen beyond a spade

For your love ends all my plight
Please always be in my sight
Never ever go away to ad agony
Play with me the music of life's Symphony

Tuesday, July 21, 2015

Standing Alone in the Crowd

Standing alone in the crowd
Waiting for the fate to turn
This wasn't my destiny
But, I landed in this situation

Walking through the glaring sun
Marching towards the colder zone
I meet the hurdles in my life
Though I myself have not been a hurdle

I stretch my hand to get some help
They do hold my hand 
Not realizing that I am asking for help
But thinking I am there to help them

Several time I had to divert from goals
To help them for they thought I would
But then they forgot that I exist
With their focus on their own life

Least they bother about me
Least they think of my pain
They more not bothered even
When I yell out in agony

All the way in my journey
I have been the cause of help
But nobody ever asked me
If I have been ever helped

They are not bothered
For them I am just a helper
This is not my destiny
But, I landed in this situation

Standing alone in the crowd
Half way through Life's journey
I don't feel that its my destiny
But. I landed in this situation

Tuesday, July 14, 2015

कुछ तो लोग कहेंगे

कुछ तो लोग कहेंगे 
जोक्स से वो जरूर चिढ़ेंगे 
उनको तो बस करना है मनमानी 
बद्तमीजी है उनको करनी 

क्या खुद कहते हैं क्या खुद करते हैं 
उससे बेपरवाह रहते हैं 
लेकिन दुनिया में कहीं कोई कुछ करे 
तो उसपर ऐतराज़ करते हैं 

खुद दुनिया को कहें अपशब्द 
तब खुद का बड़प्पन मानते हैं 
वहीँ अगर हम करें छोटा सा मज़ाक 
तो कहते हैं मर गया रज़ाक 

क्या इन लोगों के जीवन में कुछ नहीं है 
ऐसे लोगों के जीवन से मिलती है सीख 
कहीं जरूरत न हो तो ना चलो अपनी ज़बान 
चमड़े की बनी है कहीं फिसल ना जाए॥ 

Sunday, July 12, 2015

बेटी

ये कैसा राष्ट्र है मेरा
ये कैसा देश है मेरा
जहाँ सोना है माँ की गोद में
छुपना है माँ के आँचल में
और खाना है माँ के हाथ से
पर बेटी से नहीं भरना घर

ये कैसी सोच है हमारी
ये कैसा समाज है हमारा
जहाँ राखी बांधने को बहन चाहिए
साथ खेलने को सखी चाहिये
और वंश बढ़ाने को बीवी चाहिए
पर बेटी किसी को नहीं चाहिए

अरे संकीर्ण सोच के स्वामियों
जरा ज्ञान चक्षु अपने खोलो
चहुँ दिशा में देखो अपने
अपने मष्तिस्क को टटोलो
अरे देखो सारे रिश्तों की डोर
हाथ बढ़ाओ बेटियों की ओर

कोख से उनको इस संसार में आने दो
की एक कोख जपेगी तभी दूसरी बनेगी
भविष्य में मान,बहन, बीवी चाहिए यदि
तो जनमने दो हर घर में बेटी अभी 
नहीं होगी बेटी अगर तुम्हारी 
तो मानो कम होगी एक माँ, बहन, बीबी 

अरे बेटी तो लक्ष्मी का स्वरुप है 
समय आने पर रणचंडी का रूप है 
अपने बाप का मान है वो 
अपनी माँ का नाम है वो 
एक बेटी कितना सुख लाती है जीवन में 
जानोगे तभी जब नहीं मारोगे उसे कोख में!!

Friday, July 10, 2015

It Just Rained

It just rained out there
After days of wait every where
The water just poured down the sky
As if God was giving life a try

The grass on the ground started breathing
For it had been in the sun all seething
Trees just swayed with the flow of wind
As if dancing to the tune of rain's music

The life for once again felt hopeful
Birds and creatures sounded cheerful
Deep down beneath the crust of soil
With joy the seeds just started to boil

O'God, please know that we need water
O'God, please bless us as adequate and proper
But please ensure that the supply us ample
just to let the life survive and have supple

Thursday, July 9, 2015

अम्बा स्तुति

ॐ नमो भगवती भार्गवि 
माँ जगदम्बा नमो नमामि 
जय जय हे दुःखहरणी 
जय जय हे सुखकरणी 

नमो नमः शैलपुत्री 
नमो नमः दुर्गा कल्याणी 
जय जय हे अम्बे गौरी 
जय जय हे काली कात्यायनी 

नमो नमः ज्योत्सना किराती 
नमो नमः चण्डिका महागौरा
जय जय हे देवमात्रे पार्वत्यै 
जय जय हे धर्मज्ञानायै धर्मनिष्ठायै 

जय अम्बे अम्बालिके  अहोशनी 
जय जय है शिवकान्ता शिताक्षी 
जय शरण्या त्रयम्बके गौरा 
जय जय हे शारदा सिंहयाना 

ॐ नमो नमः भगवते भार्गवि॥ 

Why for You

When you were not mine
Why did I want you
When you were not with me
Why did I intend to be with you

When the world was standing by 
Why did I wait for you
When the whole world was sleeping
Why was I awake for you

It was neither my love for you
Nor was it my hatred for you
But still there was something
That held me to be for you

Unknown are all the reasons
All of them beyond comparisons
I am not sure why I did
What I did for you!!

Me!

I have been like this for ages
I have been like this for life
Before you met me, I was I
After you met me I have been I

Your love for me turned me
It turned me in who am I
Your love for me moulded me
It moulded me in what I am

I was I from when I know myself
Could not change to be decorated in shelf
I was human and will be human
For the ages I would live

Your love could mould me
Your love could turn me
but
Your love could not change me

I have been who I am 
Your love just polished it
I have been what I am
Your love just sharpened it

For your love I couldn't change
For your love I couldn't bend
but
That shouldn't mean I don't love you!!!!


जीवन से आशाएं

आशाओं से भरा ये जीवन
या जीवन से बनी आशाएं
किस बात को हम माने
किस डगर पर हम जाएं

देखें यदि जीवन को
तो लगता है नीरस बिन आशा के
किन्तु पहलू दूसरा देखें
तो जीवन से भी हैं आशाएं

 जीवन की हर डगर पर
बीज आशा का बोते हैं
आगे बढ़ते हुए हम जीवन में
सफलता की आशा करते हैं

बिन आशा के जीवन अधूरा है
दिन आशा जीवन में अँधेरा है
आशाओ से भरा जीवन परिपूर्ण है
जीवन से आशाएं भी महत्वपूर्ण हैं॥ 

Thursday, June 18, 2015

धधकती ज्वाला में खोया है हर कोई

धधकती ज्वाला में खोया है हर कोई 
ना अपनों में ना परायों में पाया है कोई 
दुःख की तपिश में आज जीता है हर इंसान 
सुख की ललक में बन रहा वो हैवान 

था वक़्त कभी जब अपनों में बैठा करते थे
दुखों की ज्वाला पर अपनत्व का मलहम लगाते थे 
था वक़्त कभी जब बच्चे परिवार में पलते थे 
अपनों में रह अपनत्व का भाव सीखा करते थे 

आज हर इंसान अपनों से दूर है 
अपनत्व की हर शिक्षा से आज वो अनभिज्ञ है 
अपनों से बढ़कर आज मैं में जीता है 
अपनत्व से बढ़कर अहम के भाव में खोता है 

धधकती ज्वाला में खोया है हर कोई 
अपनों से दूर अपने ही अहम में खोया है हर कोई 
दुःख की तपिश में आज जीता है हर इंसान 
अपने ही अहम के साये में बन रहा वो हैवान॥ 


Wednesday, June 3, 2015

डर

डर की ना कोई दवा है 
ना डर का कोई इलाज
यह तो सिर्फ पनपा है 
अपने ही खयालो के तले

डर के आगे ना हार है ना जीत 
डर के सामने ना है किसीका वज़ूद 
डर रहता है दिलों में छुप कर 
नहीं किसी डर का कोई अंत 

डर कर जीने वालों
डर कर जीना छोडो 
देखो अपनी आँखें खोल कर 
ज़िन्दगी कितनी खूबसूरत है 

डर को छोड़ किनारे 
ज़िन्दगी की कश्ती कहना सीखो 
डर से छुप घर में ना बैठो 
बाहर की दुनिया देखो कितनी शालीन है 

डर से ना आज तक कोई जीत पाया है 
ना ही डर को दरकिनार कर कोई जी  पाया है 
लेकिन तुम अग्गज़ करों अपने अंदाज़ से 
लड़ो डर से आज तुम, कर खुद पर भरोसा ||  





वक्त का तकाज़ा

दिल में  यादें बसी हैं
कसक बन गयी अधूरी तमन्नाएँ
वक्त का तकाज़ा है शायद
कि दवा भी आज दर्द दे गयी


यादों में आज भी ताजा है
वक्त वो, जो गुजर गया कहीं
 यादों में आज भी ताजा है
वक्त वो जब हम तन्हां नहीं थे


एक था वक्त उन दिनों
जब दोस्तों के संग मिल बैठते थे
अब वो वक्त है संगदिल
कि दोस्तों का दीदार मुनासिब नहीं


एक वो वक्त था हमारा
कि तन्हाई को हम ढूंढते थे
और अब ये वक्त है आज का
जब तन्हाई में ज़िन्दगी बसर करते हैं


कि तब तन्हाई में वक्त गुजरता नहीं था
अब है कि हर आलम तन्हां तन्हां सा है
इंसानों के बीच रहकर भी
दिल हमेशा तन्हां तन्हां सा है


मशीनो के रहकर इन्सां
खुद एक मशीन बनकर रह गया है
ज़िन्दगी के मुकाम पर बढ़ते
खुद तन्हाई की मिसाल बन गया है


एक वो वक़्त था कभी हमारा
जिसकी यादें आज भी साथ हैं
आज ये वक़्त है कुछ ऐसा
जिसकी हर याद तन्हाई ही है!!!


Friday, May 1, 2015

नदिया

अठखेलियाँ खाती नदी की धारा से 
सीखा क्या तुमने जीवन में 
क्या सिर्फ तुमने उसकी चंचलता देखी 
या देखा उसका अल्हड़पन 
कभी देखी तुमने उसकी सहिष्णुता 
या कभी देखी उसकी सरलता 

नदिया के प्रवाह में छुपी अपनी कहानी है 
उसकी अठखेलियों में भी 
छुपी जीवन की अटूट पहेली है 
कैसी शांत प्रवृति से एक नदिया 
संपूर्ण जीवन चक्र को चलाती है 
अपनी अल्हड़ता से भी एक पाठ सीखाती है 

प्रकृति के हर स्वरुप में भी नदिया 
नहीं भटकती है कभी ध्येय से 
राह की रुकावट भी कभी रोक नहीं पाती 
नदिया को गंतव्य तक पहुँचने से 
पहाड़ों में कठिन मोड़ हो या मैदानो की सहजता 
किसी भी स्वरुप में नदिया का मनोबल नहीं टूटता 

सीख सकते हो यदि नदिया से तुम कुछ 
तो सीखो सहिष्णुता का पाठ 
प्रकृति के प्रचंड स्वरुप में भी 
नहीं डिगता जिसका कभी ध्येय 
सीख सकते हो तो सीखो नदिया से 
शांति से जीने का पाठ 

Saturday, April 25, 2015

मरता है तो मरने दो

वो मरता है तो मरने दो 
नेता हैं तो क्षमा मांग लेंगे 
उसके मरने से उनको क्या 
वो तो सत्ता के नाम मरता है 

फांसी वो लगाये, चाहे खाए विष 
नेताओं को उससे क्या लेना है 
सत्ता के गलियारों में 
बस दो चार पल उसपर बोलना है 

किसान हो वो, या किसी का पिता 
इससे नेताओं का क्या है जाता 
पति हो किसी का या किसी का बेटा 
मरने से उसका नेताओं का ना कुछ मिटा 

लज्जा ना आई उनको यूँ बतियाते 
फांसी पर चढ़ गया कोई लाचार 
बैठ अपनों से वो करते रहे वार्तालाप 
ना उठ सके उसको लगाने एक हुंकार 

लज्जा ना आई उनको कि शोक मना लें 
जाकर देते हैं बयान, कि हैं क्षमाप्रार्थी 
क्या उनकी क्षमायाचना से 
उठ बैठा इंसान छोड़ अपनी अर्थी॥ 

Tuesday, March 10, 2015

दामन

यूँ ना जा तू आज दामन छोड़ कर
कि इस दामन में तेरा बचपन पला है
इस आँचल ने तुझे तपिश में ढंका है
इसी आँचल की छाँव में तेरा लड़कपन गुजर है
ना आज तू इस दामन को बेज़ार कर
ना दुनिया के सामने अपनी माँ को शर्मसार कर
ज़िद है गर तेरी कि तुझे खुद चाहिए
तो चल उस राह पर जहाँ खुदा तुझे ढूंढे
ज़िद गर तेरी है दौलत पाने की
तो चल उस राह पर जहाँ दौलत तुझे चूमें
ना जा तू आज यूँ दामन छुड़ा कर
कि कहीं तू दुनिया के थपेड़ों से झुलस ना जाए
माँ की ममता का यूँ ना उड़ा मखौल
कि कहीं तू माँ के अस्तित्व को ना मिटा दे।।

दोराहा

ज़िन्दगी के कैसे दोराहे पर खड़े हैं
की जिस और कदम बढ़ाएंगे नुकसान ही है
गम-ऐ-जुदाई गर एक तरफ है
तो रिश्तों के कच्चे धागे दूसरी ओर
अब चलें भी तो किस राह चलें
साथ दें भी तो कि किसका दें
आज अपने ही अपनों से बेगाने हैं
आज अपनों से ही हम बेआबरू हुए
दोराहे पर यूँ खड़े हैं अब हम
यूँ ज़िन्दगी से बेज़ार हुए से हैं ह

Wednesday, January 28, 2015

तरक्की की होड़

जब हम छोटे बच्चे थे
दिल से हम सच्चे थे
जात पात का नहीं था ज्ञान
भेद भाव से थे अनजान

जब हम छोटे बच्चे थे
गली में जा खेला करते थे
छत पर रात रात की बैठक थी
चारपाई पर सेज सजती थी

जब हम छोटे बच्चे थे
मिलकर एक घर में रहते थे
राह हमारी एकता की थी
सारे रिश्तों में सच्चाई बसती थी

घर में जो एक टीवी था 
दूरदर्शन उसमें चलता था
बुनियाद हमारी पसंद थी
महाभारत और रामायण भी देखी थी

अब समय और हो चला है
अब हमारे बच्चे हैं
दूरियां अब हमारे बीच हैं बढ़ी
रिश्तों में भी दरार पड़ी

अब हम अपने घर में रहते हैं
तमाम चैनल्स देखते हैं
मिलने का अब वक़्त ढूँढते हैं
फेसबुक और स्काइप पर मिलते हैं

रिश्तों में अब ना वो महक है
ना है डोर रिश्तों की पक्की
चेहरे पर अब मुस्कान तो होती है
पर दिलों से गर्मजोशी गायब है

जब हम छोट्टे बच्चे थे
साथ में हम रहते थे
आज जब हमारे बच्चे हैं
हम अपनों से बेगाने रहते हैं

तब हम दिल से रिश्ते निभाते थे
आज हर रिश्ता बोझ लगता है
तरक्की की होड़ में हमने 
गवां दिए हैं कुछ अपने||

Tuesday, January 20, 2015

जीवन पत्तों सा

पत्तों से सीखो तुम ज़िन्दगी का अफ़साना
जीते है वो तुम्हें देने को स्वच्छ वायु
जीते हैं वो तुम्हें देने को फल और फ़ूल
देते हैं सारी उम्र वो दूसरो को
सूख कर भी वो करते हैं भला सबका
पेड़ उनको भले ही झाड़ कर गिरा दें
पत्ते फिर भी खाद बन पेड़ के ही काम आते हैं
कुछ भी हो रिश्ते तो पत्तों से सीखो
जड़ तो सिर्फ पेड़ को पानी सींचती है
जड़ तो केवल पेड़ को तान कर रखती है।

Sunday, January 18, 2015

ज़िन्दगी की ज़ुत्सजु

ज़िन्दगी की जुत्सजु में हुआ है कमाल
ज़िन्दगी को ही जीने की चुनौती दिए बैठे हो
ज़िन्दगी की हर चाल तुम्हारे लिए है
और तुम उस चाल पर भी अपनी चाल लिए बैठे हो

क्या ज़ुल्म ज़िन्दगी तुमपर करेगी 
तुम खुद अपनी हार की माला लिए बैठे हो
ज़िन्दगी से इस द्वंद्व में लड़ ज़िन्दगी से
तुम खुद अपनी असफलता संवार बैठे हो

गर गिरेबां में अपने झाँक कर देखोगे
हर लुत्फ़ ज़िन्दगी से उधार लिए बैठे हो
ये आशियाँ, ये लम्हें, ये वादियाँ
ज़िन्दगी ने ही तुम्हारी इससे तुम्हें नवाज़ा है

ना ज़िन्दगी को यूँ तुम दो चुनौती
कि ज़िन्दगी चुनौतियों से जूझना है सिखाती
ज़िन्दगी के हर मोड़ पर कोई सबक
ज़िन्दगी तुम्हें है सिखाती

ना यूँ करो तुम ज़िन्दगी से कोई शिकवा 
कि ना यूँ करो तुम उसे बेज़ार
अपने ही गिरेबान में एक बार झाँक कर देखो
ज़िन्दगी से तुम लिए बैठे हो ज़िन्दगी उधार||