Tuesday, December 16, 2014

अब तुम हमें जीने दो

और नहीं अब और नहीं 
आतंक का साया और नहीं
जीना है अभी जीने दो हमको
इंसानियत का खात्मा अब नहीं

धर्म के नाम पर ना करो अधर्म
बेगुनाहो का ना करो यूँ क़त्ल
जीना है अभी हमें और
इंसानियत को न यूँ जाया करो

बच्चो ने क्या बिगाड़ा था तुम्हारा
क्या थी उनकी खता
मासूम थे वो, अनजान गुनाह से
क्यों उनपर तुमने कारतूस बरसाए

ख़त्म करो अब आतंक का नंगा नाच  
खत्म करो लाशों पर चलना
बच्चो की सादगी से आज तुम खेले
खत्म करो अब ज़िन्दगी से खेलना

खुदा नहीं देगा तुमको जन्नत
ना मिलेगी तुमको वहां हूर परियां
दोजख में भी ना मिलेगी तुम्हें पनाह
कि शैतान से होगा तुम्हारा सामना

छोड़ भी दो अब तुम हैवानियत
जीने दो जहां में अब इंसानियत
बहुत हो चूका मौत का तांडव
अब तुम हमें जीने दो

कफ़न-ओ-ताबूत दिखते ये छोटे हैं
लेकिन भार इनका हम न ले पाएंगे
कैसे किया तुमने यह गुनाहे अज़ीम
कैसे किया तुमने यह गुनाहे अज़ीम??

बंद करो अब मज़हब का धंधा
बंद करो यह कत्लेआम
छोड़ दो अब तुम ये हैवानियत
जीने दो जहाँ में अब इंसानियत॥ 


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