Friday, November 15, 2013

जीवन से जीवन का नाता

जीवन से जीवन का है ये कैसा नाता
नहीं संसार में जो इसको समझता
हर पल हर क्षण लेता एक परीक्षा
कैसे कोई पूरी करे जीवन की समीक्षा

हर रिश्ता हर नाता बंधा अलग डोर से
रिश्तों के द्वन्द में जीवन उलझता हर ओर से
कैसे सुलझाए कोई रिश्तो की ये गुत्थी
दर लगता है कि कहीं खो ना दे अपनी हस्ती

कच्चे धागों से बंधी कर रिश्ते की डोर
उसपर चलता है जीवन का हर दौर
रिश्तों से जीवन का है ये कैसा नाता
नहीं संसार में कोई जो इसको समझ पाता

हर पल हर रिश्ता लेता जीवन परिक्षा
हर जीवन बीत जाता करते ये समीक्षा
कैसे जीयें जीवन संभाल रिश्तों की डोर
कैसे बीताये कोई जीवन के ये कठिन दौर||

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