Wednesday, January 9, 2013

राजनीति का खेला

देखो मेरे देश में राजनीति का खेला
प्रजातंत्र में लगता है राजतंत्र का मेला
यहाँ नहीं है कोई किसी का, ना गुरु ना चेला
बस सत्ता की दौड़ की यहाँ होती हमेशा बेला

जनता चाहे भूखो मरे, या जले उसकी चिता
निताओं को केवल रहती है अपनी गद्दी की चिंता
नहीं यहाँ आदमी आदमी को है कुछ गिनता
अपने घर का चूल्हा जले यही सोच में हर कोई फिरता

देश में हर और है केवल ये तेरा ये मेरा का नारा
गली मोहल्ला भी करता जात पांत का बंटवारा
जलता है इसमें देश तो क्या जाता हमारा
हमारे नेताओं को तो केवल पैसा है सबसे प्यारा

हर घटना पर यहाँ लगता राजधानी में है डेरा
सत्ता के कटघरों में लगता जनता का फिर फेरा
हर घटना का बनता यहाँ राजनीतिक घेरा
पक्ष-प्रतिपक्ष देते अपने ही तरह से ब्योरा

होती आलोचना हर घटना की नेताओं द्वारा
देते वो आश्वासन ना होगा ऐसा दुबारा
फिर भी हमला होता देश की जनता पर
बैठे रहते हमारे नेता अपने घरों में दुबक कर

जो होता यहाँ कहते हम जनता पर अन्याय
नेता बोलते भूल अपना कर्म और ध्येय
राह भटकता पथिक है यहाँ हर नागरिक
दबा देते उसकी वाणी कह घटना को पारिवारिक||


No comments: