Sunday, October 7, 2012

गरीब

दौलत से तो हूँ मैं गरीब
पर हूँ खुदा के इतना करीब
जानता हूँ क्या है इंसानियत
परख लेता हूँ मैं हैवानियत

दो गज ज़मीन पर सोता हूँ
दो जून रोटी से गुज़रा करता हूँ
महंगाई मुझे क्या सताएगी
मैं तो अपनी ही किस्मत का मारा हूँ

सर्द हवाओं के झोंकों में
दर अपने बंद करता हूँ
बरसात की बूंदें ना आए
यह सोच बरसाती ओढ़ सोता हूँ

ज़िन्दगी के गम गलत करने को
खुदा की इबादत करता हूँ
शराब के कारखाने में भी मैं
पानी पर गुज़ारा करता हूँ

महंगाई क्या मारेगी मुझे
मैं अपनी ही किस्मत का मारा हूँ
दौलत से तो हूँ मैं गरीब
पर मेरे खुदा के हूँ मैं करीब||

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