Wednesday, April 18, 2012

तेरी बद्दुआ और मेरी दुआ

तुम कहे जाते हो हमें दगाबाज़
तुम कहे जाते हो हमें बेदर्द
कहाँ का ये इन्साफ है कहो ज़रा
कि तुम्हारी नज़र का ना हो ये धोखा

कहा गर तुमने हमें बेवफा
तो सिला है ये तुम्हारी ही मोहब्बत का
कहा गर तुमने हमें बेगैरत
तो जान-ऐ-हुस्ना है ये तेरी ही बद्दुआ

जाना है गर तुझे अपनी मंजिल की और
तो ले जा तू हमसे दुआएँ ता उम्र की
गर  जीना है तुझे किसी और के संग
तो ले जा तू हमसे हमारी जिंदगी


ना तू कभी हमारी थी ना हो सकी
तो  तेरी बद्दुआ का हम क्या करेंगे
जब तू ही ना मिली हमें ऐ हंसी
तो  तेरी यादों का हम क्या करेंगे

गर गुजारिश कर सके कबूल
तो ना कर बेज़ार अपनी मोहब्बत को
बद्दुआएँ बहुत दे चुकी तू हमें
कि  कुछ दुआएँ हमारी कर कबूल

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