Sunday, December 4, 2011

मुलाक़ात

सोचा ना था इस कदर यूँ मुलाक़ात होगी
तेरी यादों में यूँ तन्हा शाम-ओ-सहर होगी
इन्तेज़ार में हाल-ऐ-दिल का क्या गिला करें
इन्तेहाँ है कि बेसब्र दिल अब भी तेरा नाम ले
यादों में तेरी यूँ शाम-ओ-सहर ग़मगीन है
कि तन्हा हम ना कभी ग़मों के साए से हुए
यादों में तेरी जो दर्द-ऐ-मुरव्वत से रूबरू हुए
सर्द हवा का झोका जो हमें छू कर निकला
तेरी बाहों में गुजरे हा पल का एहसास करा गया
यादों में तेरी यूँ शाम-ओ सहर गमगीन है
सोचा ना था इस कदर तुमसे मुलाक़ात होगी
तेरी सूरत में मुझे मेरी जिंदगी कि सांझ मिलेगी
झरोखों से उजली चांदनी मे ऐ मेरे कातिल
मुझे मेरी जिंदगी कि आखरी मंजिल मिलेगी
सोचा ना था कि ये आलम इस कदर ग़मगीन होगा
तेरी यादों में हवा के सर्द झोंके सा एहसास होगा 

1 comment:

Mayank Trivedi said...
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