Saturday, August 13, 2011

जीवन बरखा

क्यूँ करते हो ये शिकवा
कि थोडा और बरस लेने दो
जीवन की प्यास बुझने दो
मझधार में ना यूँ कश्ती छोडो
कि किनारे तक मुझे खेने दो
डूबने का डर नहीं मुझे
ना ही जीने की है तमन्ना
सोचता हूँ गर कभी
तो देखता हूँ तेरा ही सपना

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